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मन का विलय
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क्रिया की सिद्धि । यह प्रथम बार में ही नहीं हो जाती। अभ्यास इस दिशा में हो कि हमें उस सिद्धि की स्थिति तक पहुंचना है । जब व्यक्ति एक घंटे की एकाग्रता साध लेता है तब उसे अपना मार्ग स्वयं दिखने लग जाता है । कठिन प्रक्रिया
एक विषय पर एक घंटा एकान होना भी मामूली बात नहीं है। यह कठिन साधना से ही फलित होने वाली सिद्धि है। जो इस स्थिति का स्पर्श कर लेता है, उसके लिए कोई उपदेश आवश्यक नहीं होता । 'उवदेसो पासगस्स णत्थि'-द्रष्टा के लिए उपदेश आवश्यक नहीं होता। जो उस स्थिति में चला जाता है, उसे कोई भी उपाय विचलित नहीं कर सकता। पूर्णसिद्धि तीन घंटे से प्राप्त होती है। तीन घंटे तक इस प्रकार की सामायिक करें और समभाव में एकाग्र हो जाएं तो समता की सिद्धि होगी। यह बहुत कठिन प्रक्रिया है । यदि बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है तो उसकी प्राप्ति का साधन छोटा नहीं हो सकता। मंत्र और औषध
दूसरी बात है-मंत्र के द्वारा सिद्धि । मंत्र की सिद्धि के लिए भी यही बात है । मन्त्र का जप भी तीन घण्टे तक पहुंच जाए तो सिद्धि हो सकती है।
तीसरी बात है-औषधि के द्वारा सिद्धि । यह सरल है । वनस्पति जगत् का भी बड़ा चमत्कार है। इसके द्वारा भी सिद्धि होती है।
ये तीन साधन हैं। वनस्पति के विषय में हमारी जानकारी अल्प है इसलिए इसे छोड़ दें तो दो ही साधन रह जाते हैं-एक क्रिया का और दूसरा मंत्र का । इन दोनों साधनों के द्वारा समभाव का अभ्यास किया जा सकता
कुंभक की स्थिति
यह नहीं कहा जा सकता-हम एक साथ तीन घंटे का अभ्यास या एक घंटे का अभ्यास कर लें। प्रारम्भ में हम मन को निर्विकल्प करने के संकल्प से बैठे । आधा या एक मिनट तक मन में कोई विकल्प न आए—ऐसा अभ्यास प्रारम्भ करें। उस अभ्यास-दशा में भी हम स्वयं अनुभव करेंगेहमारे मन में सुख-दुःख का कोई भाव नहीं है, बाहर की घटना का कोई प्रभाव नहीं है। यदि पांच मिनट तक मन खाली रहे, कोई विकल्प न आए तो बाहर में कुछ भी घटित क्यों न हो, उसका असर नहीं होगा। यह निरोध की स्थिति है। इधर से किवाड़ बन्द कर दिया, उधर क्या हो रहा है, कुछ भी पता नहीं चलेगा।
कुंभक में यह स्थिति घटित होती है । हम कुंभक के द्वारा या बिना
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