SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन की विलय २३१ विकल्प और अशान्ति समता और निर्विकल्प अवस्था दोनों में तालमेल है । हम सामाटिका का अनुष्ठान करते हैं। यदि सामायिक में मन को निर्विकल्प नहीं कर पाते ता सामायिक का वह परिणाम, लाभ-अलाभ में सम, सुख-दुःख में सम निन्दा. प्रशंसा में सम, जीवन-मरण में सम, मान-अपमान में सम रहना नहीं होगा। यह स्थिति प्राप्त नहीं होगी, क्योंकि हमने मन को खाली नहीं किया, मन के विकल्पों को नहीं छोड़ा। जब तक विकल्प रहेगा, वह उसे पकड़ेगा। सामायिक समाधि तब प्राप्त होती है जब हम मन को निर्विकल्प कर देते हैं। ____ अशान्ति और विकल्प साथ-साथ जन्म लेते हैं। अशान्ति कोई अलग वस्तु नहीं है । अशान्ति और विकल्प एक साथ पैदा होते हैं। विकल्प बढ़ता है तो अशान्ति भी बढ़ जाती है । इस अवस्था में कुछ भी स्पष्ट रूप से पता नहीं चलता । जब विकल्प तीव्र होता है तब अशान्ति की मात्रा भी तीव्र हो जाती है । विकल्प की मात्रा के साथ-साथ अशान्ति की मात्रा भी बढ़ती जाती है। व्यक्ति अशान्ति को मिटाना चाहता है पर अशान्ति तब तक नहीं मिटती जब तक हमारा विकल्प नहीं मिटता। सुख दुःख : वस्तु और प्रकंपन का योग अशान्ति और विकल्प एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों साथसाथ चलते हैं । विकल्प को मिटाए बिना अशांति को नहीं मिटाया जा सकता। साधना में एक बात मुख्य है । वह बात है मन को खाली करने की । सुख-दुःख है क्या ? हमें इस पर सोचना है। हम वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में देखें या दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में देखें, हमें यह ज्ञात होगा कि हमारा सारा जीवन प्रकम्पनों का जीवन है । बाह्य जगत् में प्रकम्पन हैं, वाइब्रेशन्स हैं और भीतरी जगत् में भी प्रकम्पन हैं। प्रकम्पन ही वास्तव में सुख-दुःख पैदा करते हैं। केवल वस्तु से सुख या दुःख नहीं होता । वस्तु और प्रकम्पन-दोनों का योग होने पर उनकी अनुभूति होती है। सामायिक : संवर की प्रक्रिया: संवर की प्रक्रिया से प्रकम्पन बन्द हो जाते हैं। सामायिक संवर की प्रक्रिया है। इसमें प्रकंपन निरुद्ध हो जाते हैं, शान्त हो जाते हैं । जैसे ही मन समभाव की स्थिति में जाता है, प्रकम्पन बंद हो जाते हैं। जब प्रकम्पन बंद हो जाते हैं तब लाभ या अलाभ, सुख या दुःख, निंदा या प्रशंसा, हमारे लिए कुछ भी नहीं है। क्योंकि उन प्रकम्पनों को ग्रहण करने वाले द्वार को तो हमने बन्द कर दिया। खिड़की बन्द कर दी, अब आंधी चले या तूफान, भीतर कुछ भी नहीं आयेगा। सामायिक समाधि प्रकम्पनों को बन्द कर देने Jain Education International bal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy