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________________ ३० 'चित्त और मन जब लेश्या-ध्यान का प्रयोग करते हैं और जैसे ही ज्योति प्रकट होती है तब कुछ चमकीला पदार्थ दिखने लगता है। जब भीतर के स्पंदन जागते हैं, लेश्याओं के स्पंदन जागते हैं तब ये तरंगें हमारे सामने आती हैं। एक ऐसा प्रसाद बरसने लगता है कि मन खो जाता है, कहीं नहीं रहता। व्यक्ति दूसरी स्थिति में चला जाता है । कालातीत : देशातीत . जब मन उपस्थित रहता है तब काल का बोध हुए बिना नहीं रहता। काल का अबोध अमन की स्थिति में ही हो सकता है । व्यक्ति एक घंटा तक ध्यान में बैठता है किन्तु उसे लगता है कि पांच-दस मिनट ही हुए हैं। यह अनुभूति अमन की स्थिति में ही हो सकती है, मन की स्थिति में नहीं। अमन की स्थिति कालातीत स्थिति है। अमन की स्थिति देशातीत स्थिति है । मन का काम है काल को जागरूकता से देखना, जानना । वह कालातीत या देशातीत नहीं हो सकता । अमन की स्थिति में न कोई विकल्प आता है, न चिन्तन आता है, कुछ भी नहीं आता । मन के सारे कार्य समाप्त हो जाते अमन की स्थिति सहज प्राप्त नहीं होती। यह साधना से प्राप्त होती है। इसके लिए लंबी प्रतीक्षा और साधना करनी पड़ती है। महावीर की सहिष्णुता: कारण ___ मैं कई बार सोचता है कि महावीर को इतने कष्ट झेलने पड़े, क्या कोई शरीरधारी व्यक्ति ऐसे कठोर कष्टों को झेल सकता है ? क्या ऐसी स्थिति में कोई समभाव में रह सकता है ? एक आदमी ने उनके कानों में कीलें ठोकी, गालियां दीं, फिर भी वे प्रसन्न रहे, हंसते रहे। जरा भी उनमें आवेश नहीं आया। यह कैसे संभव हो सका ? मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचासविकल्प मन में यह संभव नहीं है। मन की सविकल्प अवस्था में लाभ में सुख होगा, प्रसन्नता होगी और अलाभ में विषाद होगा, विषण्णता होगी। सुख होने पर आह्लाद की अनुभूति होगी और दुःख होने पर कष्ट की अनुभूति होगी। विकल्पयुक्त मन में यही होगा और कुछ हो नहीं सकता। किन्तु जैसे ही हमने मन को विकल्प से खाली कर दिया, फिर लाभ हो या अलाभ, सुख हो या दु:ख, कुछ भी अन्तर नहीं आएगा। जिसके कारण अन्तर आ रहा था, महावीर ने उसको ही समाप्त कर डाला। महावीर ने विकल्प-चेतना को समाप्त कर दिया। कहा जा सकता है--निर्विकल्प अवस्था में रहकर महावीर ने कष्ट सहा था. इसलिए अन्तर नहीं आया। अगर महावीर सविकल्प अवस्था में रहते तो अन्तर अवश्य आता। सम वह रह सकता है,. जिसका मन निर्विकल्प होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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