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________________ २२४ नींव के पत्थर मन और समस्या ___ मन होता है और बहुत होता है। इसलिए हम मन नहीं होने की बात सोच सकते हैं। अगर मन नहीं होता तो शायद हम मन के होने की बात सोचते। किन्तु मन होता है और बहुत बार होता है इसलिए हम इस खोज में हैं कि मन न हो। यह बात क्यों सोचते हैं ? इसका भी एक कारण है। मन का होना कोरा मन का होना ही नहीं है। मन का होना बहुत सारी समस्याओं का होना है। क्योंकि जिस यंत्र के द्वारा मन संचालित होता है और मन में जो प्रवाहित होता है, उस नलिका में बहुत सारी चीजें ऐसी भी आती हैं, जिन्हें हम नहीं चाहते । इसलिए हम बहुत बार सोचते हैं कि मन न हो तो बहुत अच्छी बात है। प्राण और वत्ति मन उत्पन्न होता है प्राण के द्वारा । यदि प्राण न हो तो मन उत्पन्न नहीं होता । प्राण मन को उत्पन्न करता है, मन जागृत होता है या निर्मित होता है । जैसे ही मन उत्पन्न होता है, अपना काम करने लगता है, वृत्तियां उस पर हावी हो जाती है । उस छोटे-से बच्चे पर वृत्तियां इतनी हावी हो जाती हैं कि बेचारा मन कुछ भी नही रहता । इतने आवरण ऊपर आ जाते हैं कि उनके इशारों पर उसे चलना पड़ता है। प्राण और वृत्ति-एक उत्पन्न करने वाला और एक हावी होने वाला, ये दो तत्त्व ऐसे हैं, जो मन जैसे भोले बच्चे को दःखी बना डालते हैं। जीवन में बहुत बार आवेग आते हैं। आवेग क्यों आते हैं ? क्या मन में आवेग हैं ? मन का अपना कोई आवेग नहीं है किन्तु वृत्तियों में आवेग होते हैं और वे मन पर छा जाते हैं। हमें लगता है-सारी खुराफात मन की है। वस्तुतः मन में कोई खुराफात नहीं है । दो मुख्य केन्द्र योगशास्त्र में अन्नमयकोष, प्राणमयकोष और मनोमयकोष के पश्चात विज्ञानमयकोष बतलाया है । विज्ञानमयकोष का अर्थ है-विज्ञानशरीर । कोष का अर्थ है शरीर । ज्ञान शरीर, बुद्धि शरीर या मस्तिष्क के पीछे जो सूक्ष्म शरीर है-यह विज्ञानमय कोष है । हमारे शरीर के ऊपर का जो भाग है, वह ज्ञान से सम्बन्धित है। यह ज्ञान क्षेत्र है । पृष्ठरज्जु या कटि का जो क्षेत्र है, वह है काम-क्षेत्र । ये दो मुख्य केन्द्र हैं-ज्ञान-केन्द्र और काम-केन्द्र । जब ज्ञानधारा ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होने लग जाती है तब मन की चंचलता, इन्द्रियों की चंचलता, वासनाएं और आवेग, क्षोभ और उदासी-ये सारी स्थितियां बनती हैं। जब काम-केन्द्र की ऊर्जा को ऊपर ले जाते हैं, ज्ञान-केन्द्र में ले जाते हैं या ज्ञान-केन्द्र से नीचे नहीं उतरने देते तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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