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चित्त और मन
मात्मा अन्तरास्मा बनती है। अध्यात्म की यात्रा के स्तर पर मात्मा अन्तरात्मा बन जाती है। हमारी परिणति आन्तरिक बन जाती है, अन्तरात्मा का उन्मेष जाग जाता है। परमात्मा
__ जब साधक इससे आगे बढ़ता है तब अनुभूति का स्तर बदल जाता है। श्रेय के साथ हमारा संबंध जुड़ जाता है, शुद्ध चेतना के साथ हम मिल जाते हैं, जिसके साथ संबंध कटा-कटा सा था, उस विशुद्ध चेतना के साथ पुनः संबंध स्थापित हो जाता है। एक छोटा स्रोत अपने मूल स्रोत से मिल जाता है । यह परम आत्मा की स्थिति है। इस स्तर पर आत्मा परमात्मा बन जाती है। स्तर अनुभूति का . अनुभूतियों के स्तरों के आधार पर आत्मा के तीन रूप बन जाते हैं-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा ।
हम इसकी तुलना आज के मनोविज्ञान की भाषा से कर सकते हैं। उसके अनुसार मन के तीन प्रकार हैं-कोन्शियस माइड, सबकोन्शियस माइंड और अनकोन्शियस माइंड-चेतन मन, अर्द्धचेतन मन और अवचेतन मन ।
प्रेक्षाध्यान स्वतंत्रता का घटक है। इससे चेतना का जागरण होता और साधक अपने मूल स्रोत-आत्मा तक, प्रभु तक, परमात्मा तक पहुंचने में समर्थ हो जाता है।
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