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________________ आत्मविज्ञान : मनोविज्ञान २१६ आवेगों के कारण होती हैं । क्रोध, ईर्ष्या, भय, लालच - ये बीमारी के उत्पादक हैं । बहुत सारी बीमारियां ग्रन्थियों के स्राव के कारण बढ़ती हैं, अवांछनीय रासायनिक प्रक्रिया होती हैं । इस दृष्टि से भी ये आवेग घातक हैं । ये आवेग कर्म की परम्परा को तो आगे बढ़ाते ही हैं, किन्तु शरीर के लिए भी लाभदायक नहीं हैं । हमें कर्मशास्त्र को केवल जानना ही नहीं है, उसके रहस्यों को जानकर उनसे लाभ उठाना है । वह है आवेग का नियंत्रण | आवेगों पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए । कर्मशास्त्र की भाषा में आवेग नियंत्रण की तीन पद्धतियां हैं- उपशमन, क्षयोपशमन और क्षयीकरण । उपशमन मनोविज्ञान की भाषा में इसे दमन की पद्धति कहा गया है । एक व्यक्ति आवेगों का दमन करता चला जाता है । मन में जो भी इच्छा उत्पन्न हुई, जो भी आवेग आया, उसे रोक लिया, शांत कर दिया, दबा दिया। वह दबाता चला जाता है और दमन करते-करते अध्यात्म - विकास की ग्यारहवीं भूमिका तक चला जा सकता है । यह भी ऊंची भूमिका है । इसका नाम है -उपशांत मोह | इसे ग्यारहवां गुणस्थान कहा जाता है । इस भूमिका में मोह उपशांत हो जाता है । इतना उपशांत कि व्यक्ति वीतराग हो जाता है । यह दमन का रास्ता है, विलय का नहीं । इसलिए कुछ ही समय पश्चात् ऐसी स्थिति बनती है कि दबा हुआ कषाय उभरता है और उससे ऐसा झटका लगता है कि ग्यारहवीं भूमिका में गया हुआ साधक नीचे लुढक जाता है फिर वह उन्हीं आवेगों से आक्रांत हो जाता है । दमन की पद्धति को अस्वीकार नहीं किया जा सकता किन्तु यह व्यक्ति को लक्ष्य तक नहीं पहुंचा पाती । क्षयोपशमन यह दूसरी पद्धति है । मनोविज्ञान की भाषा में इसे उदात्तीकरण की पद्धति कहा गया है । इसे मार्गान्तरीकरण भी कहा जाता है। इसका अर्थ है - रास्ता बदल देना, उदात्त कर देना, परिष्कृत कर देना, परिमार्जन कर देना । क्षयोपशमन का अर्थ है - कुछ दोषों का उपशमन हुआ और कुछ क्षीण हुए। इसमें उपशमन और क्षय, साथ-साथ चलते हैं । क्षयीकरण यह तीसरी पद्धति है । इसका अर्थ है—पूर्ण क्षीण कर देना, समाप्त कर देना, विलय कर देना । इसमें उपशमन नहीं होता । जो भी आया, उसे मष्ट कर दिया । यह नष्ट करते हुए चलने की पद्धति है । यह है सर्वथा आगे बढ़ जाने की पद्धति । ऐसा करने वाला व्यक्ति पूर्णतः आगे ही बढ़ता चला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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