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________________ चित्त और मन साथ एकात्मक हो जाता है, एकरूप हो जाता । यथाख्यात चारित्र इतना अप्रकम्प होता है कि वहां छिपाव की बात सर्वथा समाप्त हो जाती है । वह छद्मरहित अवस्था होती है । भीतर से एक प्रकार की नग्नता जैसी अवस्था हो जाती है । कोई छिपाव या आवरण नहीं रहता । आधार है मोह विलय । यह हमारी आध्यात्मिक चेतना का सारा मोह विलय के आधार पर होता है हमारी मूर्च्छा उतनी ही प्रबल हो जाती है । होती है, आचार उतना ही विकृत होता चला जाता है दृष्टिकोण भी मिथ्या होता चला जाता है । एक मार्ग है मोह की और दूसरा मार्ग है मोह की दुर्बलता या मोह के विलय का । से चलते हैं तो आध्यात्मिक चेतना मूच्छित होती चली जाती है और दूसरे मार्ग से चलते हैं तो आध्यात्मिक चेतना विकसित होती चली जाती है । हम किस प्रकार मोह को क्षीण करें, यह साधना का केन्द्र बिन्दु है । मोह को शांत करें, राग-द्वेष को कम करें और इस प्रकार जीवन जीएं कि कषाय कम होता जाए, राग-द्वेष कम होता रहे । यह जैसे कर्मशास्त्रीय भाषा है, वैसे ही अध्यात्म शास्त्रीय मीमांसा है । जैसे अध्यात्म - शास्त्रीय मीमांसा है, वैसे ही स्वास्थ्यशास्त्रीय मीमांसा है, मानसशास्त्रीय मीमांसा है । इन आवेगों का केबल हमारी आध्यात्मिक चेतना पर ही प्रभाव नहीं होता किन्तु हमारे मन पर मन की शांति और स्वास्थ्य पर भी प्रभाव होता है । मानस चिकित्साशास्त्र २१८ विकास क्रम है मोह जितना हमारी मूर्च्छा Jain Education International । यह सारा का For Private & Personal Use Only प्रबल होता है, जितनी प्रबल और हमारा आज की मनोवैज्ञानिक खोजों ने इस विषय को बहुत उजागर कर दिया कि आवेगों का व्यक्ति के मन पर कितना असर होता है और आवेगों के कारण कितने प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं । यह विषय पहले भी अज्ञात नहीं था । प्राचीन आचार्यों ने यह स्पष्टता से प्रतिपादित किया है कि आवेगों से रोग उत्पन्न होते है। आवेगों के द्वारा वात, पित्त और कफ विकृत होते हैं और रोग सरलता से आक्रमण कर देते हैं । प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों में इन विषयों की विशद जानकारी प्राप्त होती है किन्तु वर्तमान में जो मानसशास्त्रीय खोजें हुई हैं, उनसे इस विषय पर चामत्कारिक प्रकाश पड़ता है । आवेग नियंत्रण की पद्धति प्रबलता का पहले मार्ग मनस्- चिकित्साशास्त्र कुछ अद्भुत बातें प्रस्तुत करता है । हम मानते हैं कि बीमारियां शरीर में पैदा होती हैं। डॉक्टर कहते हैं कि कीटाणुओं के द्वारा बीमारियां उत्पन्न होती हैं किन्तु मनस्- चिकित्साशास्त्र कुछ और ही कहता है । उसका कहना है कि सत्तर-अस्सी प्रतिशत बीमारियां मानसिक www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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