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________________ आत्म विज्ञान : मनोविज्ञान २११ आत्मा को सुख, पाप-कर्म से दु:ख और दोनों के विलय से मुक्ति होती है। कर्म के आंशिक विलय से आंशिक मुक्ति-आंशिक विकास होता है और पूर्णविलय से पूर्ण मुक्ति-पूर्ण विकास । भोजन आदि का परिपाक जैसे देश, काल सापेक्ष होता है, वैसे ही कर्म का विपाक नो-कर्म सापेक्ष होता है। नो-कर्म कर्म-विपाक की सहायक सामग्री को नो-कर्म कहा जाता है । आज की भाषा में कर्म को आन्तरिक परिस्थिति या आन्तरिक वातावरण कहें तो इसे बाहरी वातावरण या बाहरी परिस्थिति कह सकते हैं। कर्म प्राणियों को फल देने में क्षम है किन्तु उसकी क्षमता के साथ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, अवस्था, भव-जन्म, पुद्गल, पुद्गल-परिणाम आदि-आदि बाहरी स्थितियों की अपेक्षाएं जुड़ी रहती हैं। मानस शास्त्र : आवेग ___ मानसशास्त्र के अनुसार आवेग छह हैं-~-भय,क्रोध, हर्ष, शोक, प्रेम और घृणा । आवेगों का जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव है। सारे मानवीय आचरणों की व्याख्या आवेगों के आधार पर की जाती है। किस प्रकार के आवेग में किस प्रकार की स्थिति बनती है, यह स्पष्ट है । एक व्यक्ति का मुक्का उठा और हमने समझ लिया कि वह गुस्से में है । आवेग के आते ही एक प्रकार की स्थिति बनती है, अनुभूति होती है । उसका प्रभाव स्नायु-तंत्र पर पड़ता है, पेशियों पर होता है, एक प्रकार की उत्तेजना पैदा हो जाती है । उत्तेजना के अनुरूप सक्रियता आ जाती है और पेशियां उसी के अनुसार काम करने लग जाती हैं । हमारे स्नायु-तंत्र पर, पेशियों पर, रक्त पर, रक्त के प्रवाह पर, फेफड़ों पर, हृदय की गति पर, श्वास पर और ग्रंथियों पर आवेग का प्रभाव होता है। आवेग : परिणाम भय का आवेग आते ही स्नायविक तरंग उठती है । यह मस्तिष्क तक उस संदेश को ले जाती है। उत्तेजना पैदा हो जाती है । वह पाचन-संस्थान को भी प्रभावित करती है। पाचन अस्त-व्यस्त हो जाता है। उत्तेजना मांसपेशियों तक पहुंचती है । वे सक्रिय हो जाती हैं । एड्रिनल ग्रंथि का स्राव अधिक होता है, उसके कारण व्यक्ति में कुछ साहसिक कार्य करने की क्षमता जागृत हो जाती है । वह साहसिक बनकर प्रहार करने की स्थिति में आ जाता है । यह सारा शारीरिक परिवर्तन आवेग के कारण होता है फिर बाहर से उसके लक्षण भी दिखाई देने लग जाते हैं, जिनके आधार पर हम समझ सकते हैं कि व्यक्ति भयभीत है, क्रोधी है। आवेगों के कारण शारीरिक क्रियाओं में रासायनिक परिवर्तन, शारीरिक लक्षणों में परिवर्तन और अनुभूति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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