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चित्त और मन वे पैदा भी होते हैं और नियंत्रित भी होते हैं। दोनों कार्य साथ-साथ चलते हैं। यदि भाव उत्पन्न हों और साथ में नियंत्रण की क्षमता न हो तो मनुष्य इतने आवेग में आ जाए कि शरीर की व्यवस्था ही लड़खड़ा जाए। शरीर के साथ यह एक वैज्ञानिक बात भी जुड़ी हुई है कि एक भाव पैदा होता है तो साथ में नियंत्रण की बात भी रहती है । यह स्वाभाविक प्रक्रिया है।
इस रेटीकूलर फॉरमेशन की क्रिया को कर्मवाद की भाषा में औदारिक व्यक्तित्व और क्षायोपशमिक व्यक्तित्व कहा जाता है। ये दोनों व्यक्तित्व साथ-साथ चलते हैं । औदारिक व्यक्तित्व है इसलिए क्रोध, भय आदि भाव उत्पन्न होते हैं और क्षायोपशमिक व्यक्तित्व (चेतना की निर्मलता) है, इसलिए उन पर नियंत्रण होता है। उत्पन्न होना और नियंत्रित होनादोनों अवस्थाएं साथ में चलती हैं । कर्म : वर्तुल
मैं मानता हूं कि कर्मवाद की जो आन्तरिक धाराएं हैं, उनके अनुसार ही स्थूल शरीर के सभी अवयवों का निर्माण होता है। यह स्थूल शरीर कर्म शरीर (सूक्ष्मतम शरीर) का संवादी शरीर है। जितनी प्रवृत्तियां, जितने प्रकंपन सूक्ष्म शरीर में होते हैं, उतने ही अंग, प्रत्यंग, अवयव इस स्थूल शरीर में बन जाते हैं। यह बिलकुल संवादी है। जो भाव जन्म लेते हैं, वे सारे कर्म के द्वारा संचालित हैं और वे नये कर्म का पुनः निर्माण करते हैं। यह एक वर्तुल है। कर्म के द्वारा निषेधक भावों का उत्पन्न होना और इन निषेधक भावों के द्वारा फिर कर्म का आगमन होना-यह चक्र निरन्तर चलता रहता है। जब तक यह चक्र नहीं तोड़ा जाता, इस चक्रव्यूह को नहीं भेदा जाता, तब तक समस्या का समाधान नहीं हो सकता समस्या को समाहित करने के लिए इस चक्र का भेदन अत्यावश्यक है और इस भेदन में ध्यान का बहुत महत्त्व है। यह एक उपाय है, जिसके द्वारा परिवर्तन घटित हो सकता है । ध्यान का अर्थ ही है-भावों का परिवर्तन । भावों का परिवर्तन होता है तो चक्रव्यूह अपने आप टूट जाता है। भाव से ही भाव-परिवर्तन
प्रेक्षा ध्यान का मुख्य उद्देश्य है-भावात्मक परिवर्तन । भाव का सम्बन्ध कर्मों के साथ है। हमारी आन्तरिक चेतना के साथ वे सब जुड़े हुए हैं। वे भाव विकृतियां और बीमारियां पैदा करते हैं। बीमारियां शारीरिक और मानसिक-दोनों प्रकार की होती हैं। भावों में परिवर्तन आने पर विकृतियां और बीमारियां मिट जाती हैं। भाव को भाव के द्वारा ही बदला जा सकता है। हीरे को हीरा ही काट सकता है । सजातीय को सजातीय काट सकता है। इसी प्रकार भाव के द्वारा ही भावात्मक
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