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सकता है और कम भी किया जा सकता है । सिद्धांत ।
चित्त ओर मन
यह है शक्ति परिवर्तन का
कर्मवाद का दूसरा नियम है-जाति परिवर्तन । कर्म की जाति को - बदला जा सकता है । बंधकाल में कर्म के एक प्रकार के परमाणु बंधते हैं । पश्चात् उन परमाणुओं की जाति को बदला जा सकता है । नस्ल - परिवर्तन का सिद्धान्त है । नस्ल बदली जा सकती है । उदाहरण दिया गया है । उसकी चतुभंगी इस प्रकार बनती है
यह आज का उसी का एक
१. पुण्य और उसका फल पुण्य ।
२. पाप और उसका फल पाप । ३. पुण्य और उसका फल पाप । ४. पाप और उसका फल पुण्य ।
-जटिल हैं दो विकल्प
प्रथम दो विकल्प निर्विवाद हैं । पुण्य का फल पुण्य और पाप का फल - पाप -- इसमें कोई विवाद नहीं है । किन्तु शेष दो विकल्प जटिल हैं । है पुण्य और फल होगा पाप । है पाप और फल होगा पुण्य । प्रश्न होता है कि यह संभव कैसे हो सकता है ? इसका समाधान है कि जाति-परिवर्तन के द्वारा ऐसा हो सकता है। यह एक बहुत बड़ा रहस्य है कर्मवाद का । इसके आधार पर अनेक बातें बदल जाती हैं, बहुत बड़ा परिवर्तन होता है । पुण्य का बंध हुआ । इस बंध में सारा कर्म - परमाणु-संग्रह पुण्य से जुड़ा हुआ है । किन्तु बाद में ऐसा कोई पुरुषार्थ हुआ कि उस संग्रह का जात्यंतर हो गया । जो परमाणु पुण्य के थे, वे पाप के परमाणु बन गए । जो सुख देने वाले परमाणु थे, वे दुःख देने वाले परमाणु बन गए ।
जात्यन्तर: उत्कृष्ट उदाहरण
इसी प्रकार पाप का बंध हुआ । इस बंध में कर्म का सारा परमाणु- संग्रह पाप से जुड़ा हुआ है किन्तु बाद में ऐसा पुरुषार्थ हुआ, इतनी घोर तपस्या की गई, साधना की गई कि उस संग्रह का जात्यंतर हो गया । जो पाप के परमाणु थे, वे पुण्य के परमाणु बन गए । जो दुःख देने वाले परमाणु थे, वे सुख देने वाले परमाणु बन गए ।
ये दो विकल्प बन गए । परमाणुओं का संग्रह हुआ पुण्य रूप में और उसका परिणाम घटित हुआ पाप के रूप में । यह जात्यंतर का उत्कृष्ट उदाहरण है । यह आमूल-चूल परिवर्तन का उदाहरण है ।
जाति-परिवर्तन का सिद्धांत
कर्मवाद का दूसरा महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है - जाति-परिवर्तन | इस जाति-परिवर्तन या शक्ति-परिवर्तन की प्रक्रिया को जानना आवश्यक है |
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