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कर्म शास्त्र और मनोविज्ञान
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आचरणों को प्रभावित करती है । किन्तु ये मूल स्रोत नहीं हैं । मूल स्रोत की खोज में बहुत आगे जाने की जरूरत है । आज के शरीरशास्त्रियों ने बहुत सूक्ष्म खोजें की हैं। पहले पांच मूल तत्त्व या पांच भौतिक तत्त्व ही मूल कारण माने जाते थे । आज के वैज्ञानिक वैसा नहीं मानते । आज इतने सूक्ष्म तत्त्व खोज लिए गए हैं कि ये पांच तत्त्व - पृथ्वी, अप्, तेजस्, वायु और आकाश तो उनके ही संरक्षक बन जाते हैं । ये मूल कारण नहीं हैं । मूल कारण कुछ ओर हैं ।
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वर्तमान विज्ञान का मत
आज का विज्ञान
कहता है कि आचरण और व्यवहार के पीछे रसायन काम करता है। एक आदमी आक्रमण करता है । रसायन उसका मूल कारण है । एक घटना घटती है और आदमी चिन्ता में निमग्न हो जाता है । घटना के साथ चिन्ता का कोई साक्षात् सम्बन्ध नहीं है । चिन्ता का सीधा सम्बन्ध है रसायन के साथ । एक रसायन पैदा होता है और आदमी चिन्ता में डूब जाता है । एक रसायन पैदा होता है और आदमी डर से कांपने लग जाता है । प्रत्येक आचरण और व्यवहार का अपना रसायन होता है, केमिकल होता है । वह आदमी को उस प्रकार के आचरण और व्यवहार के लिए प्रेरित करता है। तरंगशास्त्रीय संदर्भ में जब इस विषय पर सोचता हूं तो पता लगता है कि संभवतः वैज्ञानिकों ने अभी पूरे रसायनों की खोज नहीं की है, नहीं कर पाए हैं । किन्तु कर्मशास्त्रीय खोजों के अनुसार हमारे शरीर में उतने रसायनों के प्रकार हैं, जितने कर्म के प्रकार हैं । प्रत्येक घटना रसायन के साथ जुड़ी हुई है और प्रत्येक रसायन कर्म के साथ जुड़ा हुआ है । एक श्रृंखला है— कर्म, भाव और रसायन । “कर्मतों जायते भाव, भावात् कर्माऽपि सर्वदा ।” कर्म से भाव पैदा होते हैं और भाव से कर्म पैदा होते हैं । कर्म का यहां अर्थ कार्य या क्रिया नहीं है । यह पौद्गलिक अनुबंध है, जो क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में हमारे साथ जुड़ता है । क्रिया का प्रतिबिंबन या अंकन होता है और वह हमारे मस्तिष्क से जुड़ता
। यह स्थूल मस्तिष्क का अंकन बहुत स्थूल होता है किन्तु सूक्ष्म चेतना के साथ अनुबंधित हो जाता है ।
भाव का जादू
कर्मवाद के अनेक नियम हैं, अनेक रहस्य हैं । हम इन रहस्यों और नियमों को पूरा नहीं जानते इसीलिए अनेक भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं । कर्मवाद का एक नियम है-शक्ति का अल्पीकरण और शक्ति का संवर्धन | कर्म की जो फलादान की शक्ति है, उसको कम भी किया जा सकता है और बढ़ाया भी जा सकता है । फलादान की काल - अवधि को बढ़ाया भी जा
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