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परिवार बढ़े ।
और तीन प्रधान मनोवृत्तियां हैं
सुख की इच्छा ।
किसी वस्तु को पसन्द करना या उससे घृणा करना । विजयाकांक्षा अथवा नया काम करने की भावना ।
ये सभी चारित्र मोह द्वारा सृष्ट होते हैं । द्वारा उत्तेजित हो अथवा परिस्थितियों से उत्तेजित हुए भावना या अन्तः क्षोभ पैदा करता है, जैसे— क्रोध, बादि । मोह के सिवाय शेष कर्म आत्म-शक्तियों को नहीं
आहार-संज्ञा
१. रिक्त-कोष्ठता ।
२. आहार के दर्शन आदि से उत्पन्न मति ।
३. आहार-संबंधी चिंतन |
खाने की अभिलाषा वेदनीय और मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होती है । यह मूल कारण है । इसको उत्तेजित करने वाले तीन गौण कारण और हैं
मय-संज्ञा
भय की वृत्ति मोह- कर्म के
भय की उत्तेजना के तीन
१. हीन - सत्वता ।
२. भय के दर्शन आदि से उत्पन्न मति । ३. भय-सम्बन्धी चिन्तन ।
मैथुन -संज्ञा
परिग्रह- संज्ञा
चारित्र मोह परिस्थितियों
बिना ही प्राणियों में
मान, माया, लोभ आवृत करते हैं, विकृत
उदय से बनती है । कारण ये हैं
चित्त और मन
मैथुन की वृत्ति मोह - कर्म के उदय से बनती है ।
मैथुन की उत्तेजना के तीन कारण ये हैं
१. मांस और रक्त का उपचय ।
२. मैथुन - सम्बन्धी चर्चा के श्रवण आदि से उत्पन्न मति । ३. मैथुन - सम्बन्धी चिन्तन ।
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परिग्रह की वृत्ति मोह - कर्म के उदय से बनती है । परिग्रह की उत्तेजना के तीन कारण ये हैं
१. अविमुक्तता ।
२. परिग्रह - सम्बन्धी चर्चा के श्रवण आदि से उत्पन्न मति । ३. परिग्रह - सम्बन्धी चिन्तन ।
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