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________________ २०० परिवार बढ़े । और तीन प्रधान मनोवृत्तियां हैं सुख की इच्छा । किसी वस्तु को पसन्द करना या उससे घृणा करना । विजयाकांक्षा अथवा नया काम करने की भावना । ये सभी चारित्र मोह द्वारा सृष्ट होते हैं । द्वारा उत्तेजित हो अथवा परिस्थितियों से उत्तेजित हुए भावना या अन्तः क्षोभ पैदा करता है, जैसे— क्रोध, बादि । मोह के सिवाय शेष कर्म आत्म-शक्तियों को नहीं आहार-संज्ञा १. रिक्त-कोष्ठता । २. आहार के दर्शन आदि से उत्पन्न मति । ३. आहार-संबंधी चिंतन | खाने की अभिलाषा वेदनीय और मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होती है । यह मूल कारण है । इसको उत्तेजित करने वाले तीन गौण कारण और हैं मय-संज्ञा भय की वृत्ति मोह- कर्म के भय की उत्तेजना के तीन १. हीन - सत्वता । २. भय के दर्शन आदि से उत्पन्न मति । ३. भय-सम्बन्धी चिन्तन । मैथुन -संज्ञा परिग्रह- संज्ञा चारित्र मोह परिस्थितियों बिना ही प्राणियों में मान, माया, लोभ आवृत करते हैं, विकृत उदय से बनती है । कारण ये हैं चित्त और मन मैथुन की वृत्ति मोह - कर्म के उदय से बनती है । मैथुन की उत्तेजना के तीन कारण ये हैं १. मांस और रक्त का उपचय । २. मैथुन - सम्बन्धी चर्चा के श्रवण आदि से उत्पन्न मति । ३. मैथुन - सम्बन्धी चिन्तन । Jain Education International परिग्रह की वृत्ति मोह - कर्म के उदय से बनती है । परिग्रह की उत्तेजना के तीन कारण ये हैं १. अविमुक्तता । २. परिग्रह - सम्बन्धी चर्चा के श्रवण आदि से उत्पन्न मति । ३. परिग्रह - सम्बन्धी चिन्तन । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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