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कर्मशास्त्र और मनोबिज्ञान
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इसी प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ- ये सभी वृत्तियां मोह से बनती हैं। वीतराग आत्मा में ये वृत्तियां नहीं होतीं । ये आत्मा के सहजगुण नहीं किन्तु मोह के योग से होने वाले विकार हैं ।
ओघ -संज्ञा
अनुकरण की प्रवृत्ति अथवा अव्यक्त चेतना या सामान्य उपयोग, जैसेलताएं वृक्ष पर चढ़ती हैं, यह वृक्षारोहण का ज्ञान 'ओघ-संज्ञा' है । लोक-संज्ञा
लौकिक कल्पनाएं अथवा व्यक्त चेतना या विशेष उपयोग । आचारांग नियुक्ति में चौदह प्रकार की संज्ञाओं का उल्लेख मिलता
है
१. आहार- संज्ञा २. भय-संज्ञा
६. मोह- संज्ञा
७. विचिकित्सा - संज्ञा
८. क्रोध - संज्ञा
६. मान-संज्ञा
१०. माया - संज्ञा
ये संज्ञाएं एकेन्द्रिय जीवों से लेकर समनस्क पंचेन्द्रिय तक के सभी
३. परिग्रह - संज्ञा
४. मैथुन-संज्ञा
५. सुख-दुःख -संज्ञा
११. लोभ-संज्ञा १२. शोक-संज्ञा
जीवों में होती हैं ।
संवेदन दो प्रकार का होता है— इन्द्रिय-संवेदन और आवेग । इन्द्रियसंवेदन दो प्रकार का होता है
१. सात संवेदन
"सुखानुभूति
२. असात-संवेदन..दुःखानुभूति ।
आवेग दो प्रकार का होता है— कषाय और नो- कषाय ।
१३. लोक-संज्ञा १४. धर्म-संज्ञा
चित्तवृत्तियों का वर्गीकरण
दस प्रकार की संज्ञाओं (चित्तवृत्तियों) को हम तीन वर्गों में विभक्त कर सकते हैं
पहला वर्ग - आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा ।
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दूसरा वर्ग —- क्रोधसंज्ञा, मानसंज्ञा, मायासंज्ञा, लोभ-संज्ञा ।
तीसरा वर्ग — लोकसंज्ञा, ओधसंज्ञा ।
भय की वृत्ति
पहले वर्ग की मनोवृत्ति प्राणीमात्र में प्राप्त होती है । मानसशास्त्री जिसे भूख की मनोवृत्ति कहते हैं, उसे जैन आचार्य आहारसंज्ञा कहते हैं । सबमें आहार-संज्ञा होती है । इस संज्ञा के कारण प्रत्येक प्राणी आचरण करता है । हमारे आचरण का बहुत बड़ा भाग आहारसंज्ञा से प्रेरित है।
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दूसरी है - भय की संज्ञा । हमारे बहुत सारे व्यवहार भय के कारण
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