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________________ मन चुभन हुई, उसका ज्ञान ठेठ मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। वहां से हाथ को आदेश मिलता है कि कांटे को निकालो। चेष्टाकेन्द्र सक्रिय हो जाता है। क्रियाकेन्द्र का आदेश होता है और क्रियावाही तंतु सक्रिय होकर कांटे को निकाल लेते हैं। यह सारी व्यंजन से लेकर क्रिया करने तक की प्रक्रिया है । प्रत्यय : इन्द्रियजन्य ज्ञान यह है हमारे शरीर की प्रक्रिया-ज्ञान करने की और क्रिया करने की। सर्दी है, हम बैठे हैं। ठंडी हवा चल रही है । हमें सर्दी लग रही है । यह है प्रत्यय या निर्विकल्प प्रत्यक्ष । यह इन्द्रियजन्य ज्ञान है । मनोविज्ञान की भाषा में इसे प्रत्यय (Percept) कहते हैं। यह इन्द्रिय का सम्यक बोध है । यह होने के बाद हमारा जो प्रत्यय हुआ, इन्द्रिय का ज्ञान हुआ, उसके साथ फिर मन जुड़ता है। हमारी भाषा में पहले व्यंजन होता है । व्यंजन का मतलब है-विषय के पुद्गलों का ग्रहण होकर मस्तिष्क तक पहुंच जाना। फिर उस व्यंजन का बोध होता है। मन का योग नहीं, केवल इन्द्रियों का ज्ञान रहता है। यहां आते-आते मन साथ जुड़ जाता है और वह मानसिक विषय बन जाता है । हम उससे आगे चलते हैं। मन साथ में जुड़ा तब उस विषय में तर्क, ऊह, अपोह होता है, निर्णय होता है और उसके बाद धारणा हो जाती है, अनुभव का संचय हो जाता है, शक्ति का संचय हो जाता है। संस्कार, धारणा और स्मति शक्ति-संचय तक हम एक कक्षा में पहुंच जाते हैं। प्रत्यय और प्रत्यय से शक्ति-संचय यानी धारणा। उसके बाद अगली प्रक्रिया शुरू होती है मन की। धारणा हो गयी। हमारे मस्तिष्क में धारणा के प्रकोष्ठ हैं । प्रत्यय आता है और तत्काल चला जाता है । प्रत्यय सामने नहीं रहता। हमने एक व्यक्ति को देखा । व्यक्ति चला गया। किन्तु प्रत्यय या निर्विकल्प ज्ञान अपने संस्कार छोड़ जाता है । मस्तिष्क में एक परिर्वतन होता है कि वह वहां संचित रह जाता है । अब क्या होता है ? प्रत्यय तो चला गया किन्तु हमारे मन में एक प्रतिमा बन गयी। दूसरी कोई उत्तेजना सामने आती है, वह धारणा फिर जागृत हो जाती है। उसे हम कहते हैं स्मृति । संस्कार के जागरण से होने वाला संवेदन स्मृति कहलाता है । संस्कार जागा, जो वासना में था, वह जागृत हुआ, स्मृति हो गई। संस्कार और वासना का एक नाम है अविच्युति । वह च्युत नहीं होता । जो अनुभव था, वह च्युत नहीं होता, टिका रह जाता है और वही हमारे सामने स्पष्ट होता रहता है। मन की व्यापकता : विषय की दृष्टि इन्द्रियों के विषय केवल प्रत्यक्ष पदार्थ बनते हैं। मन का विषय प्रत्यक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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