SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ चित्त और मन • मानसिक कार्यक्षमता और सहिष्णुता का विकास होता है । ० मनोवृत्तियों और मानसिक व्यवहारों में परिवर्तन होता है। ० आदतें बदलती हैं। वैज्ञानिक शोध से प्राप्त निष्कर्ष भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। स्टैनफर्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट के डॉ० लियोन ओटिस ने १९७२ में एक कंट्रोलयुक्त शोध कार्यक्रम में ५७० ध्यानियों की जांच की। इनमें ४६ अफीमची थे, और उनमें से ३५ ने छह महीने के ध्यान का अभ्यास करने के बाद अफीम छोड़ दी। अग्रिम अवस्याएं : निष्पत्ति मानसिक ध्यान की दूसरी अवस्था में ईष्या, विषाद, शोक, दुश्चिन्ता आदि-आदि राग-द्वेष से उत्पन्न होने वाले मानसिक दुःख क्षीण हो जाते हैं। मैत्री, सम्भाव आदि गुण विकसित हो जाते हैं। इसकी तीसरी अवस्था में सर्दी-गर्मी आदि का संवेदन और मानसिक संस्कारों के मूल क्षीण होने लग जाते हैं । इसकी चतुर्थ अवस्था में कष्टों से विचलन और भय सर्वथा नहीं होता । सूक्ष्म तत्त्वों (Invisible Substances) का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है । मोह या भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है। शरीर और आत्मा का भेदज्ञान स्पष्ट हो जाता है। जितने संयोग हैं वे सब पृथक्-पृथक् दीखने लग जाते हैं। सब प्रकार के विजातीय तत्त्वों का विसर्जन करने की क्षमता तीव्र हो जाती है। कहीं भी आसक्ति का भाव नहीं रहता। साधना का सूत्र गौतम ने पूछा-भन्ते ! एक आलम्बन पर मन का सन्निवेश करने से क्या लाभ होता है ?' __ भगवान महावीर ने कहा-'गौतम ! उससे चित्त का निरोध हो जाता है।' चित्त-निरोध की प्रक्रिया गुरु के उपदेश से प्राप्त होती है और प्रयत्न की बहुलता से उसकी सिद्धि होती है। मन की स्थिरता जान लेने मात्र से सिद्ध नहीं होती। इसके लिए अनेक प्रयत्न करने होते हैं, लम्बे समय तक निरन्तर और श्रद्धा के साथ। कोई व्यक्ति मानसिक स्थिरता का अभ्यास करता है, उसमें पूरा समय नहीं लगाती अर्थात् तीन घंटे का समय नहीं लगाता, उसे पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं होता। थोड़ा समय लगाने से कुछ लाभ अवश्य होता है किंतु आदमी शिखर तक नहीं पहुंचता । जिसका चित्त अनवस्थित होता है--- कभी स्थिरता का अभ्यास करता है, कभी नहीं करता, इस प्रकार कभी-कभी अभ्यास करने वाला भी सफलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy