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________________ मन का अनुशासन १६१ श्वास की मन्दता का सम्बन्ध कायोत्सर्ग और मानसिक एकाग्रताइन दोनों से है । कायिक स्थिरता का सम्बन्ध श्वास की मन्दता और मानसिक एकाग्रता--इन दोनों से है । मानसिक एकाग्रता का सम्बन्ध काया की स्थिरता और श्वास को मन्दता-इन दोनों से है। इसलिए शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों की व्याख्या इनमें से किसी एक के माध्यम से नहीं की जा सकती। संभव संकल्प-निरोध ___मन की प्रवृत्ति संकल्प और विकल्प के द्वारा बढ़ती है । उसका निरोध होने पर मन का निरोध अपने आप हो जाता है। संकल्प-निरोध और ध्यान में भिन्नता नहीं है। संकल्प का निरोध किए बिना ध्यान नहीं होता जब ध्यान होता है तब संकल्प का निरोध होता ही है। फिर भी संकल्प-निरोध को मानसिक स्थिरता का ध्यान से भिन्न साधन माना गया है। इसका एक विशेष हेतु है । इसके द्वारा एक विशेष प्रक्रिया का सूचन किया गया है। संकल्प का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है। लम्बे समय तक उसे रोकने में कठिनाई होती है इसलिए प्रारम्भ में उस प्रवाह की निरन्तरता में विच्छेद डालने का अभ्यास करना चाहिए । इस प्रक्रिया को आकस्मिक कुम्भक के द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है । कहा गया-पूरक और रेचक न करें। एक क्षण के लिए कुम्भक करें, वह भी आकस्मिक ढंग से। जैसे कोई बाधा आने पर चलता पैर अकस्मात् रुक जाता है वैसे ही श्वास को हठात् बन्द कर लीजिए। क्षण-भर के लिए कुम्भक की मुद्रा में रहिए। जिस क्षण कुम्भक होगा, उस क्षण में संकल्प भी उसी प्रकार आकस्मिक ढंग से बन्द हो जाएगा। इस क्रिया को पांच-दस मिनट के बाद फिर दोहराएं । इस प्रकार बार-बार अभ्यास करने से संकल्प का प्रवाह स्खलित हो जाता है। लम्बे समय की एकाग्रता के लिए यह क्रिया पृष्ठ-भूमि का काम करती है। ध्यान ___ मानसिक निरोध का प्रबलतम हेतु ध्यान है। जब हम किसी एक विषय पर स्थिर रहने का अभ्यास करते हैं तब मन की चंचलता को एक स्थान में रोकने का प्रयत्न करते हैं। उच्छंखलता से विचरने वाली मन की चंचलता का क्षेत्र सीमित हो जाता है, हजारों-हजारों विषयों से हटकर एक विषय में सिमट जाता है, यह मन की चंचलता का गतिभंग है। इसकी बारबार पुनरावृत्ति होने पर यह गतिभंग गतिनिरोध के रूप में बदल जाता है। मानसिक ध्यान : निष्पत्ति ० मानसिक ध्यान की प्रथम अवस्था में स्नायविक तनाव कम होते हैं । • प्रसन्नता बढ़ती है। ० इससे शारीरिक और तनावजन्य रोग शांत होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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