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मन का अनुशासन
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से वंचित रहता है । लम्बे समय तक और निरन्तर अभ्यास करने वाला भी श्रद्धा के बिना सफल नहीं हो सकता। श्रद्धा का अर्थ है, तन्मय हो जाना; ध्येय के प्रति समर्पित हो जाना या उसमें विलीन हो जाना।
गुरु का उपदेश-ध्यान की प्रक्रिया की शिक्षा, श्रद्धा, दीर्घकालीन और निरन्तर अभ्यास-इस पूर्ण सामग्री के प्राप्त होने पर मानसिक एकाग्रता या निरोध की साधना सरल हो जाती है, मन के अनुशासन का प्रश्नः समाहित हो जाता है।
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