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________________ १८६ चित्त और मन लोग चाहते हैं कि आहार जैसा चल रहा है, वैसा ही चले । उस पर अनुशासन की जरूरत क्या है ? मन का और आहार का क्या संबंध ? स्थिर करना है मन को । मन पर अनुशासन साधना है तो भोजन के अनुशासन का इसके साथ क्या संबंध है ? भोजन का संबंध है पेट से, लीवर से, आमाशय और पक्वाशय से, आंतों और जीभ से तथा मुंह की लार से । मन के साथ उसका क्या संबंध है? मन को साधने के लिए क्यों आहार का अनुशासन करें? अनुशासन की प्रक्रिया __ मनोनुशासन में अनुशासन की सुव्यवस्थित प्रक्रिया है। प्राचीन ग्रन्थों में वैसी प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है । अनुशासन की प्रक्रिया के छह अंग हैं। पर प्रश्न वही आता है कि शरीर पर अनुशासन क्यों करें ? शरीर और मन का संबंध ही क्या है ? किसलिए इन्द्रियों पर अनुशासन करें ? बेचारा श्वास अपनी गति से आता है, जाता है । जागते हैं तो भी वह आता है और सोते हैं तो भी वह आता है। बैठते हैं तो भी वह आता है और चलते हैं तो भी आता है । अपने आप चलता है। उस पर नियंत्रण या अनुशासन क्यों किया जाए ? मन में उभरने वाले ये सहज प्रश्न हैं। लोग सीधा मन को ही पकड़ना चाहते हैं ? मन के अनुशासन का मार्ग ऐसा है जिसमें रज्जु का सहारा चाहिए । आकाश निरालंब है। उसमें यदि चलना है तो आलंबन लेना होगा। एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर जाना है, बीच में कोरा आकाश है । कैसे जाए ? मनुष्य ने उपाय ढूंढा। रज्जु-मार्ग का विकास हुआ। रज्जु-मार्ग से यात्रा करें। एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंचा जा सकेगा । पहाड़ के नीचे उतरने की जरूरत नहीं है । जरूरी है आलंबन अध्यात्म की यात्रा करने वालों ने, मन पर अनुशासन करने वालों ने आलंबनों को खोजा है। अध्यात्म-साधकों ने नाना आलंबनों की शरण ली है । आलबनों के बिना वहां नहीं पहुंचा जा सकता । बहुत जरूरी हैं आलंबन । इसीलिए उन्होंने छोटे-बड़े सभी आलंबनों की एक श्रृंखला बनाई। जयाचार्य ने आलंबनों की एक पूरी सूची प्रस्तुत की है। निरालंब तक पहुंचने में जिन आलंबनों की उपेक्षा है, उनमें संयम, तप, जप, शील, स्वाध्याय, अनित्य अनुप्रेक्षा, अशरण अनुप्रेक्षा, अनन्त अनुप्रेक्षा और निर्मल ध्यान-ये मुख्य हैं। इन आलंबनों का उपयोग किए बिना कोई भी साधक निरालंब तक नहीं पहुंच सकता। अशुद्ध मालबनों को छोड़कर शुद्ध आलंबनों को स्वीकार करना ---यह प्रथम नियम है । वासना अशुद्ध आलंबन है । चेतना शुद्ध आलंबन है । शरीर के दो छोर शरीर के दो छोर हैं—एक है कामना का और दूसरा है चेतना का । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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