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________________ मन का अनुशासन मांगें शायद ५०% होती हैं। यदि ६५१ मांगों के झंझट में उलझ जाएं तो मानसिक तनाव, खिंचाव, अशांति-ये सारी बातें पैदा होगी। इसलिए जो भी मांग आएं, उसकी उपेक्षा कर दें। उपेक्षा से मानसिक अनुशासन सध सकता है। मन और भाषा कुछेक दार्शनिकों ने प्रस्थापना की-संसार शब्द से उत्पन्न हुआ है। प्रारम्भ में शब्द पैदा हुआ और शब्द से सारी सृष्टि का निर्माण हुआ। मुझे लगता है कि यह कथन वास्तविकता पर आधारित है। __ सृष्टि का विस्तार वाक् से होता है, वाणी से होता है। यदि वाणी नहीं होती तो एक आदमी किसी दूसरे आदमी के साथ सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाता। कोई माध्यम ही नहीं बनता। न स्मृति होती, न कल्पना होती और न चिन्तन होता। ज्ञान के तीन पहल हैं-स्मृति, कल्पना और चिन्तन । ये तीनों वाणी के आश्रित हैं। प्रश्न हो सकता है-क्या वास्तव में मन और वाणी दो हैं ? जैन आचार्यों ने इस प्रश्न पर बहुत गहराई से विचार किया है। उन्होंने कहा--एक स्थिति में मन और भाषा दो नहीं रहते, एक बन जाते हैं। आज के मनोवैज्ञानिक भी इसी भाषा में सोचते हैं कि मन और भाषा को सर्वथा पृथक् नहीं किया जा सकता । मन का काम है-स्मृति करना, कल्पना करना, चिन्तन करना, मनन करना । क्या कोई ऐसी स्मृति है, जिसमें भाषा का साथ न हो ? क्या कोई ऐसी कल्पना होती है, जिसमें भाषा और शब्द न हो ? क्या कोई ऐसा चिन्तन होता है, जिसमें भाषा या शब्द का उपयोग न हो ? भाषा से मुक्त कोई स्मृति नहीं हो सकती, कल्पना और चिन्तन नहीं हो सकता । भाषा का मूल्य स्मृति, कल्पना और चिन्तन–तीनों के लिए शब्द चाहिए। बिना शब्द के वे लगड़े हैं, चल ही नहीं सकते । प्रश्न है--मन और वाणी या भाषा को अलग करने की सीमा कहां है ? मुझे लगता है कि यह बात हमें सीमा का बोध करायेगी कि भाषा को मूक मन कहा जा सकता है और मन को मुखर भाषा कहा जा सकता है। जब मन मुखर होता है, बोलने लगता है तब मन का नाम भाषा हो जाता है और भाषा जब मूक बनती है तब उसका नाम मन हो जाता है । कितना ही बड़ा ज्ञानी हो, अतीन्द्रियद्रष्टा हो, यदि उसके पास भाषा नहीं है तो वह दुनिया के काम का नहीं होता। केवलज्ञानी और अवधिज्ञानी भी भाषा के अभाव में अनुपयोगी बन जाते हैं। केवलज्ञानी भी मूक हो सकता है। वह जानता सब कुछ है पर बता नहीं सकता। वह दुनिया के लिए अनुपयोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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