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चित्त और मनः
वर्तमान के साथ मैत्री
हमारा मन बहुत दौड़ता है। जो व्यक्ति इस सचाई को समझ लेता है कि मन के साथ कब किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, कब मन को दौड़ने के लिए स्थान देना चाहिए और कब मन को बांध कर पिंजड़े में डाल देना चाहिए, कब मुक्त करना चाहिए और कब उसे जकड़ देना चाहिए, वह वर्तमान के साथ मैत्री स्थापित कर सकता है। मन के साथ-साथ चलने वाला कभी सफल नहीं हो सकता। जो मन के साथ नहीं चलता किन्तु मन की गति पर जब-जैसी जरूरत हो वैसा नियन्त्रण स्थापित करता है, वह व्यक्ति जीवन में सफल हो सकता है। मन कितनी कल्पनाएं पैदा कर देता है । आदमी बैठा है और तत्काल ऐसी कल्पना पैदा हुई, वह उठकर जाने लगेगा। आया और आते ही दौड़ने लग जाएगा। कोई कल्पना आई, और अकारण क्रोध उतर आया। कल्पना आ गई, अकारण ही लोभ की भावना जाग गई । अकारण ही भय जाग गया। क्या-क्या नहीं होता ! न जाने कितनी अवस्थाएं आती रहती हैं । ये सब उस व्यक्ति में आती है जो वर्तमान को नहीं जानता। जो वर्तमान को जानता है, वह मन पर अंकुश रख सकता है, नियंत्रण रख सकता है। जो इस बात को जानता है कि वर्तमान में मन से क्या काम लेना है, चेतना को कहां लगाना है, उसे मन सताता भी नहीं। मन उसी व्यक्ति को सताता है जो अतीत की यात्रा करता है। जो वर्तमान की यात्रा पर रहता है, मन उसे नहीं सताता। जो व्यक्ति मन की हर मांग को पूरी नहीं करता किंतु मन की मांग की उपेक्षा करता है, वह वर्तमान को पकड़ लेता है, मन पर नियंत्रण का सूत्र हस्तगत कर लेता है। मन की मांग उपेक्षा
एकाग्रता और उपेक्षा-दोनों साथ-साथ जुड़े हुए हैं। यदि हमने मन की मांगों की उपेक्षा करना नहीं सीखा तो शायद कुछ भी नहीं सीखा । उपेक्षा करना जरूरी है। दिन में कितनी मांगें उठती हैं। एक आदमी प्रातःकाल उठता है और रात को सोता है। इस अवधि के बीच हाथ में पेंसिल-पन्ना लेकर पूरे दिन की मांगों को लिखता जाए तो मैं सोचता हूं सैकड़ों मांगें प्रस्तुत हो जाएंगी। एक दिन में आदमी का मन सैकड़ों मांगे प्रस्तुत कर देता है। क्या आप सब मांगों को पूरा कर पाएंगे? कोई आदमी मन की मांग को पूरा नहीं कर पाता । वह व्यक्ति बहुत दु:खी होता है, जो मन की मांग के साथ चलता है। सुखी वही होता है, जो मांग की उपेक्षा कर देता है । मन की ऐसी कम मांगे हैं, जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। कुछ आवश्यक मांगें हैं। उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। उनको पूरा करना होता है। पर यदि लेखा-जोखा करें तो निकम्मी मांगें ९५%हैं, जरूरत और काम की
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