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________________ १७६ चित्त और मन एकाग्रता का विकास __ मन को प्रशिक्षित करने का तीसरा सूत्र है-.. एकाग्रता। कहीं न टिकना, चंचल बने रहना, मन की अपनी सहज प्रकृति है। यदि वह स्थिर हो जाता है तो मानना चाहिए वह अपनी प्रकृति से ऊपर उठ गया है। मन की तुलना पारे से की जा सकती है। पारा सहज चंचल होता है, उसे पकड़ा नहीं जा सकता। हजारों वर्षों से यह प्रश्न चचित होता रहा है कि मन को कैसे पकड़ा जाए। मनुष्य उद्यमशील है। उसने अनेक गूढ सत्य खोज निकाले हैं। पारा चंचल है पर आदमी ने उसकी गोलियां बांध दी। अब उसे पकड़ा जा सकता है। पारे की गोली हो सकती है तो मन को क्यों नहीं बांधा जा सकता। वह भी बंध सकता है। जैसे विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा पारा बंध सकता है वैसे ही ध्यान की प्रक्रिया के द्वारा मन को बांधा जा सकता है । एकाग्रता : विकास की पद्धति एकाग्रता मन की विरोधावस्था नहीं है। यह उसकी किसी एक विषय में निरोधावस्था है। अनेक मार्गों में जाते हुए प्रवाह को एक मार्ग में मोड़ देना है। नदी का प्रवाह जब अनेक मार्गों में बहता है, तब वह क्षीण हो जाता है। एक प्रवाह में जो शक्ति होती है, वह विभक्त प्रवाहों में नहीं हो सकती । सूर्य की बिखरी रश्मियों में वह शक्ति नहीं होती, जो केन्द्रित किरणों में होती है। मन का प्रवाह भी एक आलम्बन की ओर निरंतर बहता है तब उसमें अकल्पित शक्ति आ जाती है । एकाग्रता के क्षेत्र में मन की शान्ति और स्थिरता का अर्थ है चिन्तन-प्रवाह को एक ही दिशा में प्रवाहित करना । मन के एकाग्र प्रवाह की अनेक पद्धतियां हैं। उनमें से कुछ पद्धतियां प्रस्तुत है १. द्रष्टा की स्थिति-मन की चंचलता को रोकने का यत्न मत कीजिए । वह जहां जैसे जाता है, उसे देखते रहिए। उस समय दृश्य या ज्ञेय मन को ही बना लीजिए। इस प्रकार तटस्थ द्रष्टा के रूप में जागरूक रहकर आप मन का अध्ययन ही नहीं कर पाएंगे, किन्तु उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेंगे। २. विकल्पों की उपेक्षा आपके मन में जो विकल्प उठते हैं, उनकी उपेक्षा कीजिए। जो प्रश्न उठते हैं, उनके उत्तर मत दीजिए। जैसे प्रश्न करने वाला व्यक्ति उपेक्षा पाकर (उत्तर न पाकर) मौन हो जाता है, वैसे ही मन भी उपेक्षा पाकर (प्रश्नों का उत्तर न पाकर) शान्त हो जाता है।। ३. अप्रयत्न-मन को स्थिर करने का बलात् प्रयत्न मत कीजिए। अप्रयत्न से मन सहज ही शान्त हो जाता है। शरीर को स्थिर और श्वास को मन्द कीजिए । जैसे-जैसे शरीर स्थिर और श्वास मन्द होगा, वैसे-वैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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