SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन का अनुशासन १७५ साथ-साथ काम करेंगे, साथ-साथ विश्राम करेंगे। मन काम करेगा तो शरीर भी काम करेगा। मन विश्राम करेगा तो शरीर भी विश्राम करेगा। दोनों का पूरा सामंजस्य होगा। भावक्रिया मन को प्रशिक्षित करने का पहला सूत्र है । इससे मन पटु होता है, सूक्ष्म होता है। कल्पनाशक्ति का विकास मन को प्रशिक्षित करने का दूसरा सूत्र है-कल्पनाशक्ति का विकास, संकल्प या इच्छाशक्ति का विकास । मन को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वह स्पष्ट चित्र बना सके । कल्पनाशक्ति के द्वारा चित्र का निर्माण और संकल्पशक्ति के द्वारा उस चित्र की उपलब्धि । हमारी जो भावना होती है उसको हम अपने सुझावों के द्वारा इच्छाशक्ति के रूप में बदल देते हैं और फिर इच्छाशक्ति के द्वारा जहां पहुंचना चाहते हैं वहां पहुंच जाते हैं । जो होना चाहते हैं, वह हो जाते हैं । जिस दिशा में हम चलना चाहते हैं, उस दिशा में स्वयं प्रस्थित हो जाते हैं। संयम और संकल्प सयम और संकल्प में बहुत निकटता है। संकल्प की सिद्धि के लिए संयम के अनेक प्रयोग किए जा सकते हैं । जैसे १. एक घंटा सर्दी सहूंगा, कष्ट से विचलित नहीं होऊंगा। २. एक घंटा गर्मी सहूंगा, कष्ट से विचलित नहीं होऊंगा। ३. एक घंटा भूख सहूंगा, कष्ट से विचलित नहीं होऊंगा। ४. एक घंटा प्यास सहूंगा, कष्ट से विचलित नहीं होऊंगा। इस प्रकार संकल्प-शक्ति के अनेक प्रकार किए जा सकते हैं। आयुर्वेद से परिचित व्यक्ति जानते हैं-आठ पुटी अभ्रक और हजार पुटी अभ्रक में शक्ति का कितना अंतर है ? जितनी पुटें होंगी, उतनी ही उसकी शक्ति बढ़ जाएगी। औषधियों के प्रकरण में भावना का बहुत बड़ा महत्त्व होता है। उसी प्रकार मन में भावना की पुट देने से जो कार्य हम करेंगे उसमें दूसरा विकल्प बाधक नहीं बनेगा। अशांति क्यों है ? इसीलिए कि हम अधिकांशतः प्रतिक्रियात्मक जीवन जीते हैं। घटना कहीं घटित होती है, उसका असर हम पर होता है। बादल कहीं बरसते हैं, ठंडी हवा हमारे पर आती है। वर्षा और आतप का आकाश पर क्या असर पड़ता होगा? मनुष्य की चमड़ी पर उसका असर पड़ता है। यह सब परिस्थितियों के कारण होता है। मन की दुर्बलता एवं संकल्प-शक्ति के अभाव में ही यह स्थिति पैदा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy