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उसे जो काम सौंपते हैं, उसका वह निर्वाह करता है ।
मन का अर्थ
मन का अर्थ है --- संकल्प - विकल्प | मन का अर्थ है - स्मृति और चिंतन | मन का अर्थ है- कल्पना । मन तीनों कालों में बंटा हुआ है । जो अतीत की स्मृति करता है, उसका नाम है— मन । जो भविष्य की कल्पना करता है, उसका नाम है— मन । जो वर्तमान का चिंतन करता है, उसका नाम ---मन । तीनों चंचलताएं हैं। स्मृति एक चंचलता है । कल्पना एक चंचलता है । चितन एक चंचलता है । जब स्मृति, कल्पना और चिंतन नहीं होते तब मन नहीं होता । जब मन होता है तब तीनों आवश्यक हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में मन को स्थिर करने की बात प्राप्त नहीं हो सकती । स्थिर करने की बात केवल एक भ्रांति है । इसका मिटना आवश्यक है ।
मन को
हम मन को जिस रूप में बदलना चाहते हैं, बदल लेते हैं । मन एक आकार का होता है । उसमें असंख्य पर्याय हैं । वह भिन्न-भिन्न आकारों में बदलता है । हम जैसा चाहते हैं, वह उसी प्रकार का आकार लेना शुरू कर देता है । यह मन की विशेषता है । तन्मयता और एकाग्रता के साथ हमने जो भावना की, वैसा ही होना होता है । उसमें कोई अन्तर नहीं आता । प्रश्न है — एकाग्रता का, स्थिरता का मन बदलता है तो साथ-साथ शरीर भी
बदलता है ।
मन की भूमिकाएं
मन की दो भूमिकाएं हैं। एक है व्यग्रता की भूमिका और दूसरी है एकाग्रता की भूमिका । व्यग्र मन अर्थात् एक अग्र आलंबन पर न टिकने वाला मन । नाना अग्रों- आलंबनों पर भटकने वाला मन । उसका भटकाव कभी नहीं मिटता । एकाग्रमन अर्थात् एक ही अग्र पर टिकने वाला मन । इसमें - भटकाव मिट जाता है ।
जितनी व्यग्रता होती है उतनी ही लक्ष्य से दूरी बनी रहती है । व्यक्ति ध्येय तक पहुंचने के लिए व्यग्रता को कम
ध्येय के निकट नहीं पहुंच पाता । करना होता है ।
मन का स्थान
एक प्रश्न है- मन कहां है ? इस सम्बन्ध में चार विचारधाराएं हमारे सामने हैं
मन समूचे शरीर में व्याप्त है ।
मन का स्थान हृदय के नीचे है ।
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मन हृदय-कमल के बीच में है । हृदय-कमल की आठ पंखुड़ियां हैं, वहां मन है । कुछ योगाचार्यों का मत है- बाएं फेफड़े में जहां
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