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________________ चित्त और मन सकता। वह पौद्गलिक वस्तु का रस नहीं है। पौद्गलिक वस्तु का रस भी पौद्गलिक ही होगा । पित्त का निर्माण यकृत् में होता है, वह पौद्गलिक है। चेतना न मस्तिष्क का रस है और न मस्तिष्क की आनुषंगिक उपज भी। यह कार्यक्षम और शरीर का नियामक है । मन का मुख्य केन्द्र मन चैतन्य के विकास का एक स्तर है, इसीलिए वह ज्ञानात्मक है, किन्तु उसका कार्य स्नायुमण्डल, मस्तिष्क और चिंतन-योग्य पुद्गलों की सहायता से होता है, इसलिए वह पौद्गलिक भी है। हमारी शारीरिक और मानसिक-दोनों प्रकार की क्रियाएं स्नायुमण्डल के द्वारा संचालित व नियंत्रित होती हैं। मस्तिष्क के दो भाग हैं बृहन्मस्तिष्क लघु मस्तिष्क ज्ञानवाही स्नायु बृहन्मस्तिष्क तक अपना सन्देश पहुंचाते हैं और उसके ज्ञान प्रकोष्ठ क्रियाशील हो जाते हैं। मन का मुख्य केन्द्र यह बृहन्मस्तिष्क है। बृहद् मस्तिष्क के द्वारा जो चैतन्य प्रकट होता है, जिसमें त्रैकालिक ज्ञान की क्षमता होती है, उसका नाम है मन । मन का काम ___ मन क्रिया तंत्र का एक अंग है। यह एक कर्मचारी है। इसका काम है स्वामी के निर्देशों का पालन करना। यह न अच्छा करता है और न बुरा । अच्छे या बुरे का सारा दायित्व स्वामी का होता है, कर्मचारी का नहीं। मन एक नौकर है। इसका काम है स्वामी की आज्ञा का पालन करना, चित्त के निर्देश की क्रियान्विति करना । अच्छे-बुरे का दायित्व इस पर नहीं है किन्तु सारा दोष मन पर ही मढ़ा जाता है । यही सामने आता है। काम करने वाला ही सामने आता है, आदेश देने वाला सामने नहीं आता, वह पर्दे के पीछे खड़ा रहता है । व्यवहार में भी देखते हैं-नौकर किसी का आदेश लेकर आता है और वह आदेश प्रिय नहीं होता है तो सबसे पहले नौकर ही रोष का भाजन बनता है । सारा रोष उस पर उतर आता है। प्राचीन काल में एक दूत राजा का संदेश लेकर दूसरे राजा के पास जाता था । यदि वह संदेश प्रतिकूल होता तो राजा सोचता-इस दूत को मार डालना चाहिए । किन्तु उस समय राजाओं के बीच ऐसी संधि होती थी, जिसके कारण दूत को नहीं मारा जाता था। मन के साथ भी चित्त की सन्धि है। वह बेचारा दूत है। अनुकल और प्रतिकूल निर्देशों का वह उत्तरदायी नहीं है, वह मात्र संवेशवाहक है। यदि मन के साथ कोई संधि नहीं होती तो मन को कभी मार डाला जाता । वह निर्दोष है, फिर भी सारा दोष उसी का माना जाता है। अध्यवसाय और चित्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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