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मन
मन: परिभाषा
वर्तमान युग मानसिक समस्याओं का युग । व्यक्ति मन की समस्या से संत्रस्त बना हुआ है । सुख एवं शान्तिपूर्ण जीवन में प्रमुख बाधा है मन का समस्याग्रस्त होना । व्यक्ति मन की समस्या से मुक्ति पाना चाहता है । मन की समस्या से मुक्ति पाने के लिए मन को समझना जरूरी है । मन को समझे बिना, उसके अस्तित्व और कर्तृत्व को पहचाने बिना मन की समस्या को समाहित नहीं किया जा सकता ।
प्रश्न है— मन क्या है ? मन कोई स्थायी तत्त्व नहीं है । वह चेतना से सक्रिय बनता है । एक शब्द में परिभाषा की जाए तो कहा जा सकता हैजो चेतना बाहर जाती है, उसका प्रवाहात्मक अस्तित्व ही मन है । शरीर का अस्तित्व जैसे निरन्तर है वैसे भाषा ओर मन का अस्तित्व निरन्तर नहीं है, किन्तु प्रवाहात्मक है । 'भाष्यमाण' भाषा होती है । भाषण से पहले भी भाषा नहीं होती और भाषण के बाद भी भाषा नहीं होती । भाषा केवल भाषण काल में होती है- 'भासिज्जमानी भासा । इसी प्रकार 'मन्यमान' मन होता है । मनन से पहले भी मन नहीं होता और मनन के बाद भी मन नहीं होता । मन केवल मनन काल में होता है- 'मणिज्जमाणे मणे । मन एक क्षण में एक होता है- 'एगे मणे तंसि तंसि समयं सि' । मन : विभिन्न मत
मन के विषय में अनेक धारणाएं हैं
समतात्मक भौतिकवाद के अनुसार मानसिक क्रियाएं स्वभाव से ही भौतिक हैं ।
कारणात्मक भौतिकवाद के अनुसार मन पुद्गल का कार्य है । गुणात्मक भौतिकवाद के अनुसार मन पुद्गल का गुण है । जैन- दृष्टि के अनुसार मन दो प्रकार के होते हैं - एक चेतन और दूसरा पोद्गलिक |
पौद्गलिक मन ज्ञानात्मक मन का सहयोगी होता है । उसके बिना ज्ञानात्मक मन अपना कार्य नहीं कर सकता । उसमें अकेले में ज्ञान-शक्ति नहीं होती । दोनों के योग से मानसिक क्रियाएं होती हैं ।
ज्ञानात्मक मन चेतन है । वह पौद्गलिक परमाणुओं से नहीं बन
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