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मन का अनुशासन
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नौकर कितना ही शक्तिशाली हो, मालिक के कहे अनुसार उसे काम करना ही पड़ता है । कभी-कभी मन को अनचाहा काम भी करना पड़ता है । दोष भावना से आ रहा है । हम वहां पहुंच नहीं पाते या पहुंचना नहीं चाहते और मन से लड़ने की बात सोचते हैं । इसका परिणाम क्या होगा ? हजारों वर्षों से या अनन्त काल से आदमी मन से लड़ता रहा है पर वह आज तक उसको पराजित करने में सफल नहीं हुआ । जिन लोगों ने यह जाना-मन के साथ लड़ने का प्रयास व्यर्थ है, वे भावना के स्तर पर दोषों को सुधारने में सफल हुए हैं ।
हमें इस सच्चाई को समझ लेना चाहिए कि मन के साथ लड़ना व्यर्थ है । उसके साथ लड़ने की कोई जरूरत नहीं है । मन जो करे, उसे करने दो । यदि लड़ाई करनी है तो उससे करो, जो मन से यह करवा रहा है । उसके T साथ लड़ना व्यर्थ नहीं जाएगा । उसके साथ भी लड़ना नहीं होगा, प्रतिरोध नहीं करना होगा पर दूसरी पद्धति से उस पर नियन्त्रण करना होगा ।
स्रोत है अविरति
एक आस्रव है— अविरति । महान् आस्रव और विशाल झरना । इसके कारण नई-नई आकांक्षाएं पैदा हो रही हैं । मन को वह आकांक्षा का पानी निरन्तर मिल रहा है । उस पानी से यह सदा हरा-भरा रहता है । प्रमाद का एक झरना है । वह भी छोटा नहीं है, बहुत बड़ा है । इसके कारण आदमी सोता रहता है, जागता ही नहीं । यह महानिद्रा कभी मिटती हृीं नहीं । यह स्थूल शरीर बेचारा दिन में सात-आठ घंटे सोता होगा किन्तु प्रमाद की नींद चौबीस घंटा बनी की बनी रहती है । नींद टूटती ही नहीं, आंखें खुलती ही नहीं । कषाय का आस्रव, झरना भी विशाल है । उसका प्रवाह चारों दिशाओं में फैलता है । अहंकार, कपट, लालच, घृणा, ईर्ष्या, राग-द्वेष, प्रियता अप्रियता — उसके उपजीवी छोटे-छोटे झरने हैं । ये विविध प्रकार के झरने भीतर में बह रहे हैं । सब झरनों का पानी बेचारे मन पर गिरता है और वहां से दूसरों तक पहुंचता है। जो कुछ आता है, इस पानी के साथ बहता हुआ आता है । चंचलता भी इसी पानी के साथ आती है । यह पानी सारी गंदगी को एकत्रित कर लाता है और बेचारे मन की धारा से, मन प्रणालिका से होकर गुजरता है । हमें भीतर के झरने दिखाई नहीं देते, मन की नाली, मन की प्रणालिका दिखाई देती है । हम सोचते हैं - यह सारी गन्दगी मन से ही आ रही है । बेचारे मन को दोषी होना पड़ता है, उसकी नलिका को दोषी होना पड़ता है ।
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झरने को कैसे रोकें ?
प्रश्न है - कैसे करें ? क्या करें ? सबसे सरल उपाय है गंदगी के
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