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________________ ७० चित्त और मन प्रतिदिन बीसों घटनाएं घटित होती हैं। सोचता हूं-ऐसा नहीं रूंगा, समय आता है और वैसा ही कर लेता हूं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सोचने वाला मन कोई और है और करने वाला मन कोई दूसरा है। भीतर में ये दो बातें होती हैं । यह सब क्या : ? सबसे बड़ी परेशानी यही है कि जो सोचता हूं वह कर नहीं पाता । [ब कुछ उल्टा होता है । इसी से दिन-रात परेशानी में रहता हूं। नरपराध है मन मैंने कहा-परेशान मत बनो। यह केवल तुम्हारी ही समस्या नहीं है, पूरी मानव-जाति की समस्या है। प्रत्येक मनुष्य की यह समस्या है। अनुष्य की ही नहीं, जिस किसी प्राणी में मन का विकास है, वह इस समस्या से आक्रान्त है । दुनिया में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जो इस द्विरूप मन की समस्या का सामना न कर रहा हो। प्रश्न होता है-क्या मन भी दो हैं ? यदि मन एक होता तो आदमी का सोचना और करना एक होता। किंतु उसका सोचना और करना-दो होते हैं इसलिए यह मानना होगा कि मन दो हैं। प्रश्न है-किस मन से लड़े, और किस मन का नियंत्रण करें ? आदमी लड़ने की बात सोचता है, नियंत्रण की बात सोचता है परन्तु बहुत बार ऐसा होता है कि जिस पर नियन्त्रण करना चाहता है, वह तो बच निकलता है और जिस पर नियन्त्रण नहीं होना वाहिए, वह बेचारा फंस जाता है। अपराधी बच जाता है और निरपराधी पकड़ लिया जाता है। हमारा मन बिलकुल निरपराध है। मन कोई दोष नहीं करता । वह पवित्र शक्ति है । वह हमारे तन्त्र का शक्तिशाली अवयव है। हम उसका जैसा चाहें, वैसा उपयोग कर सकते हैं किन्तु अज्ञान के कारण हम उस पर नियंत्रण करने की बात सोचते हैं। निर्दोषी पर कैसा नियंत्रण ? दोष कहीं और है । दोषी कोई और है । व्यर्थ है मन के साथ लड़ना हमने केवल स्थल जगत को समझा है । स्थूल शरीर, स्थूल वाणी और स्थूल मन को समझा है किंतु इस स्थूल के पीछे कितना बड़ा सूक्ष्म जगत् है, उसको समझने का प्रयत्न ही नहीं किया या प्रयत्न करने पर भी समझ नहीं पाए । यदि हम अपने भीतर छिपे हुए विराट, सूक्ष्म जगत् को समझ पाते तो मन से लड़ने की बात उपजती ही नहीं। सारा दोष सूक्ष्म जगत् से आ रहा है । सारे दोष भावना से प्रवाहित हो रहे हैं । इस स्थूल शरीर के भीतर बहुत बड़ा सूक्ष्म जगत् है। वहां से आने वाली भावना की धारा मन को काम में लेती है। मन को जैसा काम सौंपा जाता है वैसा वह कर देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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