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________________ मन का अनुशासन व्यक्ति की समस्या एक भाई आया। बहुत परेशान और चिन्तित । उसके चेहरे से परेशानी टपक रही थी। उसकी आंखों में निराशा और उदासी थी। ऐसा लग रहा था-वह किसी गहरी चिन्ता से आकुल-व्याकुल हो रहा है। मैंने पूछा-ऐसी स्थिति क्यों ? क्या किसी आर्थिक झंझट में फंस गए हो ? __उसने कहा--नहीं, आर्थिक व ठिनाई कुछ नहीं है । बहुत संपन्न हूं। सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त हैं । कोई चिन्ता नहीं है । जितना चाहता हूं, उससे अधिक ही मिलता है। क्या तुम पारिवारिक समस्याओं से आक्रान्त हो ? नहीं, सौभाग्य से मुझे ऐसा परिवार मिला है, जो विरल व्यक्तियों को मिल पाता है। सभी मेरी आज्ञा की प्रतीक्षा करते रहते हैं। एक को बुलाता हूं, पांच दौड़े आते हैं । परिवार की ओर से पूर्ण निश्चित हूं। इतना ही नहीं, मेरे पास रहने वाले नौकर-चाकर भी बहुत विनीत और श्रमनिष्ठ हैं । परेशानी का कारण क्या है ? उसने निःश्वास छोड़ते हुए कहा-बाहर की मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं अपनी भीतरी परेशानी से व्यथित हूं। मेरा मन बहुत दुर्बल हो गया है। मैं इतना बेचैन हो जाता हूं कि अकारण ही सताया जाता हूं। मन पर कोई नियन्त्रण नहीं है। प्रातःकाल एक बात सोचता हूं, मध्याह्न में उसको भूलकर दूसरी बात सोच लेता हूं और सायं उसे भी भूलकर तीसरी बात सोच लेता हूं। किसी बात पर मन दृढ़ नहीं रहता। यह कैसी स्थिति है ? जानता हूं-हिंसा बहुत बुरी है। मन करता है-मैं अहिंसक रहूं परन्तु ज्योंही हिंसा की स्थिति सामने आती है, मैं हिंसा में रत हो जाता हूं, अहिंसा को भुला देता हूं। सबसे बड़ी परेशानी सोचता हं, गाली नहीं दंगा। लोग कहते हैं, गाली देना बहुत बुरा है । गाली देने से बच्चे बिगड़ जाते हैं। वे भी गालियां सीख लेते हैं। उन पर बुरा असर होता है किंतु जब उत्तेजना का अवसर आता है, मुंह से गाली निकल ही जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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