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चित्त और मन
हो जाता है, दौड़ने लग जाता है । यह वक्र अश्व है । इस अश्व को संभालना
बहुत ही टेढ़ा काम है । तब आता है जब इसको दिया जाता है ।
यह नियंत्रण से हाथ में नहीं शिथिल कर दिया जाता है,
आएगा । यह हाथ में नियंत्रण से मुक्त कर
कठोर पथ्य
हमारा शुद्ध रूप है— केवल ज्ञाताभाव, केवल द्रष्टाभाव, केवल जानना, केवल देखना । यह मन के कायाकल्प का सबसे महत्त्वपूर्ण पथ्य है । न प्रियता का संवेदन, न अप्रियता का संवेदन – कुछ भी नहीं, केवल जानना, केवल देखना । यह कठोर पथ्य है । किन्तु यदि मन का कायाकल्प करना है तो इस पथ्य का पालन करना होगा ।
मन का बुढ़ापा : तीन कारण
हम इन कारणों पर भी विचार करें कि मन बूढ़ा क्यों होता है ? मन बीमार क्यों होता है ? मन टूटता क्यों है ? इसके ऊतक खराब क्यों होते हैं ? नए ऊतक क्यों नहीं बनते ? शरीर के बीमार होने में मूल कारण यही है कि नए टिस्यू बनते नहीं और पुराने जीर्ण हो जाते हैं । यही समस्या मन की है । मन के टूटने, बीमार और बूढ़ा होने के तीन कारण हैं— शंका, कांक्षा और विचिकित्सा । मन का कायाकल्प करने वाले व्यक्ति को इन तीन तत्वों से बचना होता है । जो इनसे बचता है, उसके सामने मन के कायाकल्प -की पूरी प्रक्रिया प्रस्तुत हो जाती है ।
हम अपनी दृष्टि को विकसित करें और मन के शोधन की प्रक्रिया को जए संदर्भ में पढ़ें तो मन के कायाकल्प की पूरी किल्पना हमारे सामने प्रस्तुत होगी ।
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