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मन का कायाकल्प
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है तो औषधि सेवन से क्या ? जितना लाभ दवाई नहीं करती उतना लाभ पथ्य कर देता है।
एक साधक बता रहा था-मैंने पिछले शिविर में कुछ प्रयोग सीखे, दैनंदिन के भोजन में परिवर्तन किया। नमक छोड़ दिया, चीनी छोड़ दी। भोजन की मात्रा कम कर दी। पर मेरी शक्ति यथावत् बनी रही। आलस्य घटा, स्फूर्ति बढ़ी और कार्य करने की क्षमता का विकास हुआ। स्वास्थ्य भी पहले से बहुत अच्छा बना।
यह सारा पथ्य का ही परिणाम है । यदि पथ्य न हो, भोजन का क्रम न बदले और ध्यान भी चलता रहे तो कोई परिणाम नहीं आ सकता। पथ्य का विवेक हो, भोजन का क्रम बदले, चर्या बदले, आलस्य न रहे, श्रम हो तो ध्यान फलदायी हो सकता है । पथ्य क्या? क्यों ?
प्रश्न होता है-पथ्य क्या है ?
पथ्य है मन की शान्ति, मन की निर्मलता। जो मानव-मन जीर्णशीर्ण हो गया है, टूट-फूट गया है, उसे संभालना है तो उस पर ध्यान देना होगा। बड़ी विचित्र स्थिति है। हमारे जीवन में सबसे अधिक शक्तिशाली हैं चित्त, मन और चेतना। उन पर हम ध्यान ही नहीं देते, सारा ध्यान शरीर पर केन्द्रित कर देते हैं । जहां शरीर को कष्ट होता है वहां आदमी मन और चेतना को भी गौण कर देता है ।।
सुख का साधन है-शरीर। शरीर को आराम मिलना चाहिए। शरीर पर पसीना नहीं आना चाहिए। शरीर पर धूप नहीं लगनी चाहिए। आदमी प्रत्येक बात को शरीर की दृष्टि से ही सोचता है। वह चेतना को गौण कर देता है । जिस व्यक्ति ने कर्तव्य, सेवा, उदात्त भावना और परमार्थ चेतना को मूल्य दिया है, वह कभी शरीर का विचार नहीं करता, उसको कभी अतिरिक्त मूल्य नहीं देता, क्योंकि उसका लक्ष्य ही बदल जाता है। परन्तु इस दुनिया में जीने वाले निन्नानवें प्रतिशत लोग शरीर-प्रतिबद्ध होते हैं। वे शरीर की दृष्टि से विचार करते हैं, ध्येय की दृष्टि से विचार करते हैं। वस्तुत: मन की दृष्टि से विचार करना बहुत बड़ा पथ्य है। धन है मन का घोड़ा
मन का अश्व बहुत वक्र है। वह वक्रगति से चलता है । मन के अश्व की लगाम खींचेंगे तो वह उछलने लग जाएगा। ध्यान में मन को एकाग्र करने का प्रयत्न करते हैं तो मन' का अश्व, जो पहले शांत था, दौड़ने लग जाता है । काम में संलग्न होते हैं तो मन शांत रहता है । ज्योंही माला जपने बैठते हैं, उसमें मन को टिकाने का प्रयत्न करते है, मन और अधिक चंचल
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