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- चित्त और मन
सेमिनार में बताए गए प्रयोग किए। वे सफल सिद्ध हुए। मेरा मानसिक तनाव घटा है । नींद सुखद हुई है।
मुझे पत्र पढ़कर आश्चर्य हुआ। जो दूसरे रोगियों की मानसिक चिकित्सा करता है वह मनश्चिकित्सक स्वयं मानसिक तनाव से ग्रस्त है। इसका अर्थ है-जो पानी आग को बुझाने वाला है, उसमें ही मानो आग लग गई है। एक साधु या धर्म की आराधना करने वाला कोई गृहस्थ यदि मानसिक तनाव से ग्रस्त होता है तो मानना चाहिए-जो सूर्य की रश्मियां प्रकाश फैलाती हैं, वे अंधकार फैला रही हैं। प्रत्येक रश्मि से अंधकार फैल रहा है। यह कैसे संभव हो सकता है ?
धर्म के आचार्यों ने, अध्यात्म के साधकों ने मानसिक मैलों को साफ करने वाले, मन को शक्तिशाली बनाने वाले सैकड़ों-सैकड़ों उपाय विकसित किए हैं। उन सब उपायों के संदर्भ में मैं यह बलपूर्वक कहना चाहता हूं कि 'धम्म सरणं गच्छामि' एक स्वर्णिम सूत्र है मन की निर्मलता को घटित करने का । हम धर्म की शरण में जाएं और उसकी यथार्थता को हृदयंगम कर जीवन में उसका प्रयोग करें। अतीत का प्रतिक्रमण - दूसरा उपाय है-प्रतिक्रमण। जब अतीत का प्रतिक्रमण करने में हमारी अन्तःप्रेरणा जाग जाती है तब समग्र जीवन में परिवर्तन शुरू होता है, हम इस बात को पकड़ें-अतीत का प्रतिक्रमण और प्रायश्चित किये बिना, शोधन और परिष्कार किये बिना मानसिक ग्रंथियां नहीं खुलतीं, हजार उपचार करने पर भी परिवर्तन नहीं होता।
हमारा सबसे पहला काम है-मनोग्रंथियों को खोलना । मनश्चिकित्सा के क्षेत्र में ग्रंथि-विमोचन को अधिक महत्त्व दिया जाता है। मनश्चिकित्सक (साइकोलोजिस्ट) रोग की ग्रंथि को ढूंढने का प्रयत्न करता है। जब तक ग्रंथि पकड़ में नहीं आती तब तक चिकित्सा नहीं की जा सकती। जब ग्रन्थि पकड़ में आ जाती है तब चिकित्सा सुलभ हो जाती है ।
ध्यान की प्रक्रिया मानसिक चिकित्सा और भाव-चिकित्सा की प्रक्रिया है । यह आध्यात्मिक चिकित्सा की प्रक्रिया है। इस चिकित्सा-प्रक्रिया में अतीत के प्रतिक्रमण को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है। जब अतीत का शोधन होता है, बहुत सारा भार हट जाता है, हल्केपन का अनुभव होता
निःशल्य होने की प्रक्रिया
ध्यान की प्रक्रिया में कायोत्सर्ग का प्रयोग चलता है। कायोत्सर्ग केवल शिथिलीकरण के लिए नहीं किया जाता। शिथिलीकर तो शवासन में भी हो
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