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मन का कायाकल्प
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प्राकृतिक चिकित्सा : प्रकृति का विश्लेषण
__ एक तार्किक बोला-मेरी आदत यहां तक बिगड़ गई है । मैंने अनेक उपाय किए। चिकित्सा भी करवाई। मन की चिकित्सा की। अनेक प्रकार की औषधियां लीं, और उपचार भी किए। पर कोई उपचार कारगर नहीं हुआ। सब व्यर्थ । मैं परेशान हूं। मैं ही नहीं, मेरा सारा परिवार, मेरे सभी परिजन परेशान हैं । इस परेशानी से मैं छुटकारा चाहता हूं. आप उपाय बताएं।
__ मैंने कहा-तुम प्राकृतिक चिकित्सा कराओ। जब आदमी सभी चिकित्सा-पद्धतियों की शरण में जाकर भी बीमारी से मुक्ति नहीं पाता, सभी 'पेथियों' की खाक छान डालता है तब वह नेचुरोपैथी-प्राकृतिक चिकित्सा की शरण में जाता है।
__मन की प्राकृतिक चिकित्सा की बात भी ऐसी ही है। बहुत कम बातें बच जाती हैं हमारे सामने । फिर तर्क के लिए कोई अवकाश ही नहीं रहता। अपनी प्रकृति को देखना, अपनी प्रकृति में रहना, प्रकृति की स्थिति में रहना बहुत कठिन कार्य है। धर्म है मनोचिकित्सा का सूत्र
आज अनेक संस्थान हैं। प्रत्येक संस्थान के साथ मानसिक चिकित्सा का विभाग जुड़ा रहता है । एक मनस् चिकित्सक होता है और वह संस्थान के कर्मचारियों की समय-समय पर मनस् चिकित्सा करता है। मानसिक चिकित्सा का इतिहास बहुत प्राचीन नहीं है किन्तु धर्म का प्रयोग, जो मनश्चिकित्सा का प्रयोग है, वह बहुत पुराना है। हजारों-हजारों वर्षों में हजारोंहजारों धर्म के साधकों, अध्यात्म के माराधकों ने अनेक प्रयोग किए, अनेक सूत्र खोजे और अनेक रहस्यों का उद्घाटन किया। आज यदि उन प्रयोगों का उपयोग किया जाए तो बहुत लाभ हो सकता है । इससे न केवल मनोरोगी ही लाभान्वित होगा किन्तु मनश्चिकित्सक भी लाभान्वित होगा। मनश्चिकित्सक का पत्र
दिल्ली प्रवास में एक आयोजन संयोजित हुआ । उसका विषय थान्यूरो एन्डोक्रिन सिस्टम एण्ड मेडिटेशन । उसमें अनेक विशिष्ट चिकित्सकों और उस विद्या के प्रोफेसरों ने भाग लिया। 'आल इन्डिया मेडिकल इन्स्टीटयूट' दिल्ली से मनश्चिकित्सक डॉक्टर शकुन्तला दुबे ने उस आयोजन में भाग लिया । कार्यक्रम चला । प्रवचन और प्रश्नोत्तर हुए। लेडी डॉक्टर ने एक दिन एक पत्र भेजा। उसमें लिखा था-मैंने सेमिनार में भाग लिया। मैं बहुत ही लाभान्वित हुई। मैं स्वयं मनश्चिकित्सक हूं। अनेक रोगियों को मैंने स्वस्थ किया है परन्तु मैं स्वयं मानसिक तनावों से ग्रस्त रहती हूं। मैंने
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