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चित्त और मन
सकल्प-शक्ति का विकास कर पाता है और न आदतों को बदलने में सक्षम होता है । इस जगत् में आदतें और भी अधिक जटिल बनती जाती है। किन्तु वे ही जटिलतम आदतें इन्द्रिय जगत् से परे चले जाने पर बदल जाती हैं। अतीन्द्रिय जगत् में प्रवेश करने पर भावशुद्धि सहज-संभव हो सकती है। परिवर्तन अभ्यास से
एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि हजार बार उपदेश सुनने पर भी परिवर्तन घटित नहीं होता पर उपदेश से दिशा-बोध हो सकता है, दिशा मिल सकती है। परिवर्तन घटित होता है अभ्यास के द्वारा या अनुग्रह के द्वारा । जब महापुरुष का सान्निध्य प्राप्त होता है, उनका अनुग्रह मिलता है, तब अनायास ही परिवर्तन हो जाता है । क्योंकि उस महान व्यक्ति की प्राणधारा, आभामंडल बहुत प्रभावी होता है, शक्तिशाली होता है। ऐसे व्यक्ति के उपपात में जो व्यक्ति रहता है, उसमें परिवर्तन अवश्य आता है। पर ऐसे व्यक्ति का योग विरल होता है ।
अभ्यास के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव में परिवर्तन कर सकता है। अभ्यास परिपक्व तब होता है जब उसका चिरकालतक अनुशीलन होता है । आदत तब छूटती है जब आदमी यह जान जाता है कि आदत ने उसको नहीं पकड़ा है, उसने आदत को पकड़ रखा है। आवत परिष्कार का मनोवैज्ञानिक दष्टिकोण
विलियम जेम्स ने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आदतों को बदलने का कोर्स प्रस्तुत किया है। उसमें तीन बातें मुख्य हैं
बदलने की तीव्र इच्छा । दृढ़ निश्चय । निरन्तरता ।
पहली बात है कि व्यक्ति के मन में तीव्र अभीप्सा जागे कि उसे अपनी आदतों को बदलना है। जब तक यह इच्छा ही पैदा नहीं होती तब तक बदलने का प्रश्न ही प्रस्तुत नहीं होता। मान लें कि इच्छा पैदा हो गई। पर उससे भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। आदमी रोज यह इच्छा करता जाए कि मुझे क्रोध नहीं करना है पर क्रोध के उत्पन्न होने में कोई अन्तर नहीं आएगा। इच्छा के साथ दृढ़ निश्चय भी होना चाहिए । इच्छा को दृढ़ निश्चय में बदल देना चाहिए। निश्चय ऐसा हो कि मुझे बदलना ही है । बदले बिना मैं चैन नहीं लूंगा । निश्चय दृढ़ होगा तो रूपान्तरण प्रारम्भ हो जाएगा। दृढ़ निश्चय के साथ-साथ निरन्तरता भी होनी चाहिए । एक दिन निश्चय किया, फिर दस दिन तक उसकी स्मृति ही नहीं रही तो कुछ भी रूपान्तरण घटित नहीं होगा। निरन्तरता से आदत अपने आप बदलने लग जाएगी।
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