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पन का कायाकल्प
इस शक्ति से असंभव संभव बन सकता है। इसका भी वैज्ञानिक कारण है। हमारे शरीर में प्रवहमान सबसे शक्तिशाली धारा है-प्राणधारा । प्राणशक्ति जीवन का मूल आधार है । प्राणशक्ति जितनी प्रबल होती है, संकल्प उतना ही प्रबल होता है। जितना प्रबल होता है संकल्प, उतना ही प्रबल होता हैं परिवर्तन । संकल्प का बल स्वभाव-परिवर्तन में अपरिहार्य तत्त्व है। आभामंडल और संकल्प शक्ति
परिवर्तन का आधार है आभामंडल। जिसका आभामंडल शक्तिशाली और पवित्र होता है, उसकी संकल्पशक्ति प्रबल होती है, प्राणशक्ति शक्तिशाली होती है । सुदर्शन ने कायोत्सर्ग किया। उसके चारों ओर विद्युत् का ऐसा शक्तिशाली वलय बन गया कि प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करने वाले अर्जुनमाली की दानवीय शक्ति उस वलय को भेदने में अक्षम रही। सुदर्शन के शक्तिशाली और पवित्र आभामंडल ने अर्जुनमाली के मन में परिवर्तन वटित किया और वह हत्यारे से संत बन गया। उसने महावीर के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
इन्द्रभूति गौतम महावीर को पराजित करने के लिए आए थे। किन्तु जैसे ही उन्होंने महावीर के आभामंडल को परिधि में प्रवेश किया, वे सब कुछ भूल गए और महावीर की पवित्रता से अभिभूत होकर उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। भाव विशुद्धि
जिसके भाव पवित्र होते हैं, उसकी संकल्प-शक्ति विकसित होती है, उसका आभामंडल शक्तिशाली होता है। जो व्यक्ति बुरा सोचता है। बुरा करता है, बुरा सुनता है, उसका आभामंडल मलिन हो जाता है, उसकी आदतें बिगड़ने लग जाती हैं। यदि भाव विशुद्ध होते हैं तो आदतों का बदलना आसान होता है । फिर आदत चाहे क्रोध की हो, अहंकार की हो या काम-वासना की हो ।
भाव-विशुद्धि भी स्वभाव-परिवर्तन में कारण बनती है। इसलिए प्रतिपल भाव की विशुद्धि के प्रति जागरूक रहना चाहिए। यह है अप्रमाद । अप्रमाद का जितना विकास होता है उतना ही भाव परिवर्तन में सहयोग मिलता है। भाव-शुद्धि कब
कोई जन्म से ही मुनि या साधु नहीं बनता। वह क्रमशः पवित्र भावना का निर्माण करता है, आदतों को बदलता है और उसमें अप्रमाद का विकास होने लगता है।
इन्द्रिय जगत् में जीने वाला व्यक्ति न भाव को शुद्ध रख पाता है, न
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