________________
मन का कायाकल्प
१५५.
का सेवन कराया जाता है तो क्रोध की मात्रा कम हो जाती है । लोभ भी M एक बीमारी है । बीमार व्यक्ति को यदि कफ-शामक औषधि दी जाती है। तो उसमें लोभ की वृत्ति कम हो जाती है । वायु-शामक औषधियों से कामवासना शांत होती हैं ।
एक आदमी को काम-वासना अधिक सताती 1 वह सोचता है, यह सब उसके कर्म का उदय है किन्तु उसमें केवल कर्म का ही उदय नहीं है, शरीर के रसायन का भी उसमें योग है । इस बात को समझ लेने पर इस आदत में परिवर्तन आ सकता है । प्रयत्न के द्वारा बहुत परिवर्तन घटित हो सकता है । अन्यथा न जाने कितनी कठिनाइयां भोगनी पड़ती हैं ।
जिसमें वायु की प्रधानता होगी, वह अधिक डरेगा । नींद में भी भय लगेगा | स्वप्न भी दूषित आएंगे, और भी अनेक विकृतियां आएंगी । ज्यों ही वायु शांत होगी, भूत भाग जाएगा ।
आयुर्वेद में वायु का नाम है 'भूत' । वहां इसका पूरा प्रकरण है । वायु. का प्रकोप ही भूत-भूतनियों का प्रकोप है ।
स्वभाव निर्माण के तत्त्व
-
स्वभाव- निर्माण और स्वभाव-परिवर्तन चे चार मुख्य कारण हैंआनुवंशिकता
वातावरण
परिस्थिति
कर्म-संस्कार |
भगवान् महावीर ने कहा - 'जे आसवा ते परिसवा, जे परिसवा ते आसवा' जो आश्रव हैं, वे ही परिश्रव हैं और जो परिश्रव हैं, वे ही आश्रव हैं । जो आने के द्वार हैं वे ही जाने के द्वार हैं और जो जाने के द्वार हैं, वे ही आने के द्वार हैं। जिन कारणों से स्वभाव का निर्माण होता है, वे ही कारणTM स्वभाव परिवर्तन के सूत्र बनते हैं ।
निदर्शन
भोजन के परिवर्तन से भी स्वभाव बदल जाता है। एक कहानी हैएक साधु किसी घर में ठहरा। उसने वहां भोजन किया। कुछ ही समय पश्चात् उसकी दृष्टि आलमारी में पड़े हुए हार पर पड़ी। उसके मन में हार को चुराने की भावना जागी । उसने हार अपने पास रख लिया । अनेक विकृत विचार उसके मन में आते रहे । अचानक ही उसे वमन हुआ खाया हुआ सारा भोजन निकल गया । ज्योंही उस भोजन का वमन हुआ, उसे भान हुआ - मैंने चोरी कर कितना बड़ा पाप कर डाला । उसने तत्काल हार को मूल स्थान पर रख दिया। अनुताप किया, पश्चात्ताप किया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org