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मन का जागरण
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अपूर्वकरण : अपूर्वक्षण
___ इस प्रकार सम्यकदर्शन के द्वारा, मन:चक्र पर रही हुई ग्रन्थि के भेदन के द्वारा हम इन सारी स्थितियों को स्पष्ट समझ लेंगे। आत्मा और शरीर का भेदज्ञान, हमारी शक्तियों का बोध, हमारे अस्तित्व का बोध, हमारे अन्तर्जगत् की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का बोध-ये सारी बातें हमारे सामने स्पष्ट हो जाएंगी, मूर्छा की स्थिति से जागृति की स्थिति में हम चले जाएंगे, मूर्छा की यात्रा समाप्त कर जागृति की यात्रा प्रारम्भ कर देंगे। यह हमारे जीवन का पहला क्षण यानी अपूर्व क्षण आता है। अर्थात् इससे पहले हमने ऐसी यात्रा कभी नहीं की। यहीं से हमारी नयी यात्रा शुरू होती है, नया मार्ग शुरू होता है और हमारे सामने मंजिल भी नयी हो जाती है। इस अपूर्वकरण की स्थिति में आकर, इस अपूर्वकरण की स्थिति का अनुभव कर, हम अन्तर की यात्रा को शुरू कर देते हैं, जागृति की यात्रा को शुरू कर देते हैं ।
___ तीन यात्राएं हैं-मूर्छा की यात्रा, जागृति की यात्रा और वीतरागता की यात्रा। मूर्छा की यात्रा को समाप्त कर जागृति की यात्रा में प्रवेश करना ही साधना है । मूर्छा की ग्रन्थि को तोड़कर जागृति के छिद्र में प्रवेश करना ही साधना की सार्थकता है।
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