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________________ १५२ चित्त और मन प्रन्थिभेवन मन के चक्र से हृदयचक्र बिलकुल भिन्न है । हृदयचक्र से भिन्न जो मन का चक्र है, मन का कमल है या मन को ग्रन्थि है, उसकी कणिका में जाकर अपनी सारी चेतनाओं को समेटकर, हमारी चिंतन की रश्मियां, हमारी परिणाम धारा और हमारी भावधारा जो सारे शरीर में प्रवाहित होती है, उसे संकुचित कर, समेटकर, जब तक मन:चक्र की कणिका पर केन्द्रित नहीं कर देते हैं, तब तक उस ग्रन्थि का भेदन नहीं होता है और उस ग्रन्थि का भेदन हुए बिना जागृति, सम्यकदर्शन या सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हो सकता। यह उसकी प्रक्रिया है। जागरण की प्रक्रिया ____ अपनी धारणा के द्वारा प्राणशक्ति को मनःचक्र में केन्द्रित करना और वहां से केन्द्रित कर फिर प्राणायाम करना-रेचक, पूरक और कुंभक करनायह है जागृति की प्रक्रिया । ऐसा करने पर-मनःचक्र पर रेचक ध्यान, पूरक ध्यान, कुंभक ध्यान आदि विविध ध्यान करने पर मन की ग्रन्थि धीमे-धीमे खुलने लग जाती है। उसकी उलझन समाप्त हो जाती है। और एक दिन ऐसा आता है कि वह ग्रथि खुल जाती है, ग्रंथि-मोक्ष हो जाता है । उस ग्रन्थि का जैसे ही मोक्ष हुआ, जागरण का क्षण प्रकट हो जाता है । जागृति प्रकट होने लग जाती है और हमारी दृष्टि सम्यक् बन जाती है। हमें स्पष्ट लगने लग जाता है कि स्थूल शरीर ही सब कुछ नहीं है। स्थूल शरीर से भी बड़ी एक शक्ति है-वह है सूक्ष्म शरीर । हमें सूक्ष्म शरीर की शक्ति का बोध हो जाता है। शक्ति है सूक्ष्म शरीर में हम स्थल शरीर की शक्ति को ही शक्ति मानकर चल रहे हैं किन्तु स्थूल शरीर की शक्ति सूक्ष्म शरीर की शक्ति का सौवां हिस्सा भी नहीं है, हजारवां हिस्सा भी नहीं है। बहुत थोड़ी शक्ति है। हमारी सारी शक्ति सूक्ष्म शरीर में केन्द्रित है। हमें सूक्ष्म शरीर की शक्ति का भी बोध हो जाएगा, चैतन्य की स्वतन्त्र सत्ता का भी बोध हो जाएगा । चैतन्य की स्वतन्त्र सत्ता है। इस स्थल शरीर से और इस सूक्ष्म शरीर से परे चैतन्य की स्वतन्त्र सत्ता है, यह बात स्पष्ट हो जाएंगी। चैतन्य की स्वतन्त्र सत्ता का विकास किया जा सकता है, इसका बोध भी हो जाएगा और स्वतन्त्र सत्ता के विकास करने की प्रक्रिया का भी बोध हो जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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