SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन का जागरण अवस्था। सम्यक्त्व या जागति के आदि बिन्दु से लेकर प्रबुद्ध जागरिका तक, सारी की सारी जागरिका जागृति अवस्था है। और तुरियावस्था है केवलज्ञानी की अवस्था। कहना चाहिए-सम्यकदर्शन की सारी भावना को स्पष्ट समझने के लिए जागरिका शब्द का चुनाव बहुत उपयुक्त है। सम्यक्त्व कब होता है जैन सूत्रों में एक चर्चा है कि आठ प्रदेश ऐसे हैं, जो प्रकट रहते हैं, अभिव्यक्त रहते हैं। उन पर कोई आवरण नहीं होता। जिन्हें हम मनःचक्र की आठ पंखुड़ियां कहते हैं, वे आठ प्रदेश हैं, वहां चेतना पहुंचने पर सम्यक्त्व का विकास या जागरण का विकास होता है। उसके पहले जागृति का विकास नहीं होता । यह बहुत महत्त्व की बात है। हमारी प्राणशक्ति जब नीचे रहती है, उस स्थिति में चेतना का विकास नहीं हो सकता, सम्यकदृष्टि का विकास नहीं हो सकता । प्राणशक्ति को ऊपर की ओर ले जाए बिना उसमें स्थिरता नहीं आ सकती, मन की चंचलता मन की आसक्ति समाप्त नहीं हो सकती। इसलिए अनन्तानुबन्धी कषाय समाप्त हुए बिना जागृति प्राप्त नहीं होती। जब तक अनन्तानुबन्ध की ग्रन्थि, जिसे राग-द्वेष की ग्रन्थि कहते हैं, समाप्त नहीं होती तब तक जागरण प्राप्त नहीं हो सकता । ग्रन्थि का विच्छेदन या ग्रन्थि का क्षीण होना आवश्यक है। ग्रन्थि का विच्छेद हुए बिना सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हो सकता। चक्र, ग्रन्थि और कमल प्रश्न है-वह ग्रन्थि कहां है ? वह गांठ कहां है ? हमारे मनःचक्र में ? इसे हम गांठ क्यों मानते हैं ? इसका एक कारण है। हमारे शरीर के जो स्नायु हैं, वे स्नायु सीधे भी चलते हैं और टेढ़े-मेढ़े भी चलते हैं । वे स्नायु जहां बहुत उलझे हुए हैं, टेढ़े हैं, उन्हें गांठ कहा जाता है । क्योंकि वहां प्राणशक्ति का प्रवाह सीधा नहीं होता। प्राणशक्ति को वहां घुमाव करके गति करनी पड़ती है इसलिए उसे ग्रन्थि कहा जाता है। कुछ लोग उसे चक्र भी कहते हैं। क्योंकि चक्राकार गति करनी पड़ती है। कमल कहने का भी अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण है। कमल का मतलब यहां शब्द से नहीं कमल की भावना से है । कमल का धर्म है-संकुचित होना और विकसित होना । संकोच और विकोच, यह कमल का धर्म है। वहां हमारी चेतना या प्राणशक्ति के द्वारा उन स्नायुओं में या उलझे हुए तारों में संकोच और विकोच भी होता रहता है। चेतना प्रवाहित होती है, वे खुल जाते हैं, विकसित हो जाते हैं । जब प्राणशक्ति का प्रवाह कम होता है, वे फिर सिकुड़ जाते हैं, संकुचित हो जाते हैं। इसलिए उन्हें कमल कहना कोई अत्युक्ति नहीं है । ग्रन्थि, चक्र या कमन -ये तीनों बात कही जा सकती हैं—मनःचक्र, मनोग्रन्थि या मन-कमल।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy