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चित्त और मन
स्थितप्रज्ञा की प्रज्ञान्तर से पृथक प्रतीति होना, चैतन्य द्रव्य की अन्य द्रव्यों से पृथक् प्रतीति होना, यही सम्यक्दर्शन है और यही वास्तव में आत्मा है। यह सम्यक् दर्शन या जागरिका, एक ही बात है और यहीं से जागरण का प्रारम्भ होता है। जब यह समझ लिया जाता है--आत्मा भिन्न है और ये जितने वाकी द्रव्य हैं, विकल्प हैं, संकल्प हैं, शरीर और शरीर-जनित अनुभूतियां हैं, ये सारी की सारी भिन्न हैं । यह हमारी जागरिका का परिणाम है, इसलिए सम्यक्त्व के लिए जागरिका शब्द का चुनाव बहुत उचित है । तीन प्रकार के मनुष्य
भगवान से पूछा गया--मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं ?
भगवान् ने उत्तर दिया-मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं-सुप्त, सुप्तजागृत और जागृत।'
पुराने जमाने की बात है। शंख और मुद्गल भगवान् के श्रावक थे। एक बार शंख ने कहा-हम भोज करेंगे, सब मिलकर खायेंगे। वह धर्मआराधना में लग गया। दूसरे सारे इक्ट्ठे हो गये । भोजन बनाया। वह नहीं आया तो सबको बहुत बुरा लगा । सब भगवान् के पास गये । वहां शंख बैठा था। उसे देखकर उन्होंने कहा, 'शंख ! तुमने हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा किया। पहले तो तुमने हमसे कहा कि भोज करेंगे, अच्छे-अच्छे भोज बनाओ। हमने बना लिये। सब आ गये और तुम नहीं आये । तुमने हमारे साथ विश्वासघात किया है।
भगवान् ने कहा- ऐसा मत कहो। इसने तुम लोगों के साथ विश्वासघात नहीं किया, धोखा नहीं दिया।
'भंते ! फिर इसने क्या किया ?' भगवान् ने कहा-'इसने सुप्त जागरिका की।' भंते ! जागरिका कितने प्रकार की होती है ?
भगवान् ने उत्तर दिया, 'जागरिका तीन प्रकार की होती है-सुप जागरिका, बुद्ध जागरिका और प्रबुद्ध जागरिका । तीन अवस्थाएं
__ श्रावक सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है, यह सुप्त जागरिका है प्रमत्त संयति से प्रारम्भ कर वीतराग तक अबुद्ध जागरिका होती है । केवल की प्रबुद्ध जागरिका होती है। ये तीन जागरिकएं हैं और इनका चुना करना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
उपनिषदों में तीन अवस्थाओं का वर्णन मिलता है-स्वप्नावस्थ सुषुप्ति-अवस्था और तुरियावस्था । अगर इन अवस्थाओं की हम तुलन करें तो सुप्तावस्था है स्वप्नावस्था और सुषुप्ति-अवस्था । सम्यक्त्व है जाग
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