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________________ मन का जागरण १४७ श्वास-प्राण । सारा जीवन प्राण के द्वारा संचालित है। हम प्राणी हैं। प्राण है, इसलिए हम जीवित हैं । निष्प्राण का अर्थ है मृत । जब तक प्राण का दीप जलता है तब तक सब कुछ है । हम ऐसा प्रयत्न करें जिससे यह दीप सदा जलता रहे। ऐसे दीप इस दुनिया में जले हैं, जो शताब्दी तक जलते रहे हैं। एक दीप वह होता है जो घण्टा-भर जलकर बुझ जाता है। एक दीप वह होता है, जो दो-चार, दस-बीस दिन तक जलकर बुझ जाता है । तेल समाप्त हो जाता है, दीप बुझ जाता है । किन्तु मनुष्य ने क्या नहीं खोजा ! उसने ऐसे दीप जलाए हैं, जो सैकड़ों वर्षों तक जलते ही रहे। यह प्राण का दीप निरन्तर जलने वाला दीप है। मूर्छा का हेतु कहा गया-चरणं कफनाशाय-चारित्र से कफ का प्रकोप शान्त होता है । समता, अहिंसा और सत्य के आचरण से, प्रामाणिक व्यवहार से कफ का प्रशमन होता है । कफ का एक कार्य है-मूर्छा उत्पन्न करना । आयुर्वेद का यही सिद्धान्त है कि कफ मूर्छा पैदा करता है। भ्रमी का उत्पन्न होना, चक्कर आना, चेतना का लुप्त हो जाना--यह सब कफ के प्रकोप से होता है । चारित्र-भ्रंश क्यों होता है ? चारित्र की विकृति, आचरण और व्यवहार की अशुद्धि क्यों होती है ? कर्मशास्त्र के अनुसार चारित्र में जितने विकार आते हैं, वे मोहनीय कर्म के कारण आते हैं। मोहनीय कर्म मूढ़ता पैदा करता है, मूर्छा उत्पन्न करता है और चेतना की जागृति को लुप्त करता है। जब चेतना की जागृति समाप्त होती है, मूढ़ता और मूर्छा जागती है तब चारित्र विकृत होता है। जब चारित्र का विकास होता है तब जागृति का विकास होता है, मूर्छा समाप्त होती है। जब मूर्छा समाप्त होती है तब कफ का प्रकोप नहीं होता, कफ कुछ भी काम नहीं कर सकता। कफ का कार्य है-जड़ता पैदा करना और चारित्र का काम है-चेतना की जागृति करना। चेतना की जागृति होने पर जड़ता टिक नहीं सकती । “जाड्यं" कफ का मुख्य लक्षण है। जब शरीर में कफ का प्रकोप बढ़ता है तब शरीर जकड़ जाता है, अकड़ जाता है, स्तब्ध हो जाता है । चेतना की जागृति से यह स्तब्धता नष्ट हो जाती है । तीन दोष : तीन उपाय तीन दोष हैं-वात, पित्त और कफ। इन तीनों को मिटाने लिए तीन आध्यात्मिक उपाय हैं-ज्ञान, दर्शन और चरित्र । जब ये तीनों शारीरिक दोष उप-शान्त होते हैं तब स्वत: ही अशुद्ध भावधारा नीचे चली जाती है, शुद्ध भावधारा बहने लग जाती है।। साधना का यह मुख्य उद्देश्य है कि शुद्ध भावधारा जागृत रहे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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