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आयाम है । इस आयाम में जीने वाला समाधि को प्राप्त होता है ।
जागरूकता का अचूक उपाय
हम भीतर जाने वाले श्वास को भी देखें और बाहर निकलने वाले श्वास को भी देखें । मन जागरूक है तो श्वास को ठीक से देखा जा सकता है । मन जागरूक नहीं है तो न बाहर जाने वाला श्वास दिखेगा और न भीतर जाने वाला श्वास ही दिखेगा । दरवाजे पर खड़ा प्रहरी जागरूक नहीं होता है तो कोई भी भीतर जा सकता है, कोई भी बाहर आ सकता है । फिर प्रहरी होने का कोई अर्थ ही नहीं है । आते-जाते श्वास को देखते-देखते मन इतना जागरूक हो जाता है कि एक भी श्वास उससे बचकर निकल नहीं पाता । प्रत्येक श्वास को वह देख ही लेता है । श्वास और मन साथ-साथ रहें, साथ-साथ चलें, सहयात्री रहें। दो साथी साथ में चलें और एक नींद लेता रहे, यह नहीं हो सकता । नींद आते ही साथ छूट जाएगा । श्वास का काम है निरन्तर चलना । मन का काम यह नहीं है कि वह इसी सीमा में चले, श्वास के साथ ही रहे । असीम है मन का क्षेत्र
श्वास का क्षेत्र सीमित है । मन का क्षेत्र असीम है । श्वास का यात्राबहुत संकीर्ण और छोटा है । नथुने से फेफड़े तक ही उसकी यात्रा होती है। वहां पहुंचकर वह वापस लौट आता है । किन्तु मन का मार्ग बहुत लम्बा है, बहुत दीर्घ है । वह एक क्षण मे सारी दुनिया का चक्कर लगा सकता है । इतनी विशाल यात्रा करने वाले और इतनी तीव्र गति से चलने वाले मन को श्वास जैसे छोटे यात्री के साथ जोड़े रखना बहुत ही कठिन काम है । मन को श्वास का साथी बनाना बहुत कठोर कर्म है । मन को संकीर्ण यात्रा -पथ से बांध लेना वास्तव ही बड़ी बात है किन्तु यह किया जा सकता है । ऐसा करने पर ही मन जागरूक होता है । फिर वह कभी नही सोता । उसकी जागृति बनी रहती है । वह श्वास का साथी बन जाता है । जब कभी मन
को थोड़ी-सी झपकी आ जाती है, श्वास का साथ छूट जाता है ।
चित्त और मन
हमें मन को पूर्ण जागरूक रखना है । माध्यम है । मन को साधने के बाद उसका भटकाव जाता है, सोने की आदत मिट जाती है । वह पूर्ण नियंत्रित और जागृत हो जाता है ।
दिशा बदले
श्वास- प्रेक्षा इसका सबल
मिट जाता है, प्रमाद मिट अनुशासित हो जाता है,
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मन को जागृत करने का एक उपाय है— जीवन की दिशा को -बदलना, जीवन की गति को बदलना । श्वास को बदले बिना जीवन की दिशा को नहीं बदला जा सकता । हमारी शक्तियों का प्रतिनिधि है
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