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मन का जागरण
परमात्मा जाग जाता है। जब मन नहीं जागता तब भीतर बैठा हुआ प्रभु नहीं जागता । एक मन के जागने पर सब जाग जाते हैं । एक मन के सोने पर सब सो जाते हैं।
__ जब मन जाग जाता है फिर कोई जागे या न जागे, कोई जरूरत नहीं है। किसी को जगाने की भी जरूरत नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि मन के जगाने पर कोई सोया रह नहीं सकता। सबको जागना ही पड़ता है।
जागरूकता का विकास सिद्धान्त को जानने मात्र से नहीं होता। उसका विकास तब होता है जब साधक उचित दिशा में जागरूकता का अभ्यास करे। समाधि का अर्थ
समाधि का अर्थ है-भीतर में जागना । जो व्यक्ति भीतर में जागना शुरू कर देता है, वह समाधि को उपलब्ध होता है। जो भीतर में जागना शुरू नहीं करता, केवल बाहर ही बाहर जागता है, वह कभी समाधि को उपलब्ध नहीं होता।
__ शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और भाव-इन छह विषयों में जीने वाला व्यक्ति बाहर में जीता है । भाव का अर्थ है-मन के भाव-क्रोध, मान माया, कपट, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष आदि । जो इन छह विषयों से हटकर जीता है, वह भीतर में जीता है, भीतर में जागता है। जब व्यक्ति भीतर में जागता है, भीतर में जीता है तब समाधि अपने आप घटित होती है।
असमाधि का अर्थ है-बाहर में जागना, बाहर में जीना। मनुष्य सहज ही बाहर के प्रति जागरूक होता है क्योंकि बाहर में जितना आकर्षण है उतना भीतर में नहीं है। वस्तुत: भीतर में आकर्षण बहुत है परन्तु आदमी उससे परिचित नहीं है । समाधि का अर्थ ही है भीतर से परिचित होना, अपने आप से परिचित होना। जब मनुष्य अपने आप से परिचित होना शुरू कर देता है और परिचित हो जाता है तब बाहर में जीना उसके लिए कठिन हो जाता है। बाहर में जीता है तो भी केवल एक साक्षी के रूप में जीता है, तटस्थता के साथ जीता है, उसके आकर्षण की दिशा बदल जाती है, नया आयाम खुल जाता है। तीसरा आयाम
जब तक जीवन में समाधि का अवतरण नहीं होता तब तक आदमी प्रियता और अप्रियता-इन दो आयाम में जीता है। उसका सारा जीवन राग और द्वेष की परिधि में बीतता है । जब उसे भीतर का परिचय प्राप्त होता है, आन्तरिक जागरण होता है तब तीसरा आयाम उद्घाटित होता है। वह तीसरा आयाम है-वीतरागता, समता या संयम । यह जीवन का तीसरा.
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