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________________ १४४ चित्त और मन असीम इच्छा पराक्रम के द्वारा पूरी नहीं होती, तब देवताओं की शरण ली जाती है। कोई भी व्यक्ति देवताओं की मनौती उनके गुणों के कारण नहीं मनाता। उसमें दिव्य गुणों के प्रति कोई आस्था भी नहीं है। मुझे दिव्य बनना है, देवता सदृश बनाना है, इस भावना से कोई देवता के पास नहीं जाता किन्तु स्वार्थ से प्रेरित होकर अपनी निरंकुश इच्छा को पूरी करने के लिए उनकी शरण लेता है। दो सूत्र आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आदमी ने अपने पर भरोसा करना छोड़ दिया, श्रम और पुरुषार्थ पर भरोसा छोड़ दिया, और पूरा विश्वास देवताओं के चरणों में समर्पित कर डाला। आज लोग साधु-संन्यासियों के पास भी इच्छा-प्रेरित भावना को लेकर आते हैं, इच्छापूर्ति के लिए आते हैं । यह साधुओं के पास आने का धुंधला अर्थ है । यहां आना चाहिए सचाई के साक्षात्कार के लिए, जिससे इच्छा कम हो, चाह मिटे और सोया मन जाग जाए। एक साधारण गरीब व्यक्ति आत्मा से अत्यन्त जागत था। इकलौता बेटा दुर्घटना में दोनों पैर गंवा बैठा। अपंग हो गया। पास-पड़ोस वाले संवेदना प्रगट करने आए। वह मुस्करा रहा था। वे बोले-इतना बड़ा आघात और तुम मुस्करा रहे हो ? आजीविका का एक मात्र माध्यम अपंग हो गया, तुम्हें कोई पीड़ा नहीं है ? क्या यह मुस्कराने का क्षण है ? ऐसे मर्मान्तक क्षणों में भी मुस्कराते रहने का रहस्य क्या है ? . वह बोला-मेरी मुस्कराहट क्यों गायब हो ? मैं क्यों दुःखी बनूं ? मैंने दो सूत्र आत्मसात् कर रखे हैं। पहला सूत्र है-धन और संपदा चंचल है । दूसरा है-जीवन क्षणभंगुर है। सारे पदार्थ चंचल और क्षणभंगुर हैं। केवल मेरी मुस्कराहट ही निश्चल है, कायम रह सकती है।' ऐसा उत्तर वही व्यक्ति दे सकता है जिसे सत्य का भान हो गया है। यह तभी संभव है जब सोया मन जग जाता है। जब मन जाग जाता है __ अध्यात्म साधना की निष्पत्ति है-जागरूकता । मन को जागरूक बना देना । मन को जागरूक बनाए बिना हम उससे मनचाहा काम नहीं ले सकते। हम शरीर-प्रेक्षा करते हैं, मन को भीतर ले जाने का प्रयास करते हैं किन्तु वह बाहर ही बाहर दौड़ता है, भटकता है । क्योंकि वह जागरूक नहीं है। अजागत अवस्था में ऐसा ही होता है। जब मन जाग जाता है तब सब-कुछ जाग जाता है । मन को जगाने के बाद किसी को जगाने की आवश्यकता नहीं होती। जब मन जाग जाता है तब अपने भीतर बैठा हुआ अपना प्रभु, अपना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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