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________________ मन का जागरण भाव है । इसलिए केवल सचेतन मन को ही नहीं, अचेतन मन के कृष्णपक्ष वाले भाग को भी शांत करना है। हमें एक को जगाना है और एक को सुलाना है । सचेतन मन और अचेतन मन के कृष्णपक्ष को सुलाना है और उसके शुक्लपक्ष को जगाना है । इसका उपाय है-चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा। जब दर्शनकेन्द्र और ज्योतिकेन्द्र पर ध्यान करते हैं तो अचेतन मन का शुक्लपक्ष जागृत होता है। हृदय है हाइपोथेलेमस शरीर के दो भाग हैं-नाभि के नीचे का भाग और ऊपर का भाग। नीचे का भाग कृष्णपक्ष और ऊपर का भाग शुक्लपक्ष । शरीरशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें तो पिनियल और पिच्यूटरी ग्रन्थियों के स्राव एड्रीनलीन को प्रभावित करते हैं। इन सबका प्रभाव हाइपोथेलेमस को उत्तेजित करता है । यह हमारा भावधारा का मुख्य केन्द्र है, हमारा हृदय है। हृदय की पवित्रता मस्तिष्क में है। हमारा यह हृदय जीवन यात्रा का संवाहक है। भावना का केन्द्र जो हृदय है, वह फुप्फुस के पास नहीं है । वह हमारे मस्तिष्क में है। यह हृदय ब्रेन का एक भाग है। जब यह हृदय जागृत होता है, सक्रिय होता है तब अचेतन का शुक्लपक्ष उजागर होता है, जीवन की कल्पना और धारणा रूपान्तरित हो जाती है। जितने महापुरुष/उदारचेता और विशाल हृदय वाले व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने सचाइयों का साक्षात्कार किया है, ये वे ही लोग हुए हैं 'जिनके अचेतन मन का शुक्लपक्ष वाला भाग जाग गया। ऊंचाई का वरदान इच्छा आकाश के समान अनन्त हैं-यह एक सचाई है। हम जानते हैं कि अनेक इच्छाएं अपूर्ण रहती हैं पर इस सचाई का साक्षात्कार करने वाले विरल व्यक्ति ही मिलेंगे। साक्षात्कार वही व्यक्ति कर पाता है जिसका शुक्लपक्ष जाग जाता है। सिद्धपुरुष ने अपने भक्त से कहा-प्रसन्न हूं। कुछ मांगो। भक्त बोला-कुछ नहीं चाहिए। सिद्धपुरुष ने देखा, यह कैसा भक्त ! अमूल्य क्षण को खो रहा है। मांगने के लिए आग्रह किया। भक्त बोला–यदि आप देना ही चाहते हैं तो यह वरदान दें कि मेरे मन में चाह उत्पन्न ही न हो, मांग रहे ही नहीं। मनौती का कारण यह तब संभव है जब सत्य का साक्षात्कार हो जाता है। अन्यथा लोग मांग को पूरी करने के चक्कर में कितने देवी-देवताओं की मनौतियां मनाते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं । वे कहां-कहां नहीं भटकते। एक के बाद दूसरी मांग बनी की बनी रहती है । इच्छा पर अंकुश नहीं रहता। जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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