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मन का जागरण
रात बीतती है, सूरज उगने को होता है और आदमी जाग जाता है। सोने के बाद जागना, यह निश्चित क्रम है । कोई भी आदमी २४ घंटा तक नहीं सोता । जो २४ घंटा सोया रहता है, वह मूच्छित माना जाता है। शरीर लम्बे समय तक सोया नहीं रह सकता। चेतना लम्बे साय तक सोयी रह जाती है, वह मूर्छा में रहती है। ध्यान का प्रयोजन है-मन जागे, चेतना जागे। अचेतन मन : अच्छा भी, बुरा भी
जागना विकास है, सोना ह्रास है । जब इच्छा और शरीर का संघर्ष चलता है तब ऐसा प्रतीत होता है-चेतना सोई हुई है, मन सोया हुआ है। जब इच्छा और मन की चंचलता जीवन का संचालन करती है, तब महानता प्रगट नहीं हो पाती। उन्हीं व्यक्तियों में महानता प्रगट हुई है, जिनके जीवन की लगाम इच्छा के हाथ में नहीं थी, मन की चंचलता से जीवन संचालित नहीं था । जब सुप्त चेतना जागती है तब इच्छा ओर मन पर नियंत्रण होता है। जब इच्छा और मन पर अनुशासन होता है, तब सुप्त चेतना जागती है। हमारी चेतना शरीर में बंदी बनी हुई है । मनोवैज्ञानिकों ने कहा-सचेतन मन को शांत करो और अचेतन मन को जागृत करो, शक्तियां बढ़ेगी। जब इस तथ्य पर दार्शनिक दृष्टि से सोचते हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है कि यह सही है पर अपूर्ण है। इसमे कुछ परिष्कार अपेक्षित है । अचेतन मन के जागरण की बात कही गई तो क्या अचेतन मन में भद्दापन, कुरूपता, हिंसा और घृणा नहीं हैं ? सारे आवेग का अड्डा है अवचेतन मन । सारे बुरे भाव अचेतन मन से ही सचेतन मन में संक्रांत होते हैं। शुक्लपक्ष को जगाएं
हमें अचेतन मन को दो भागों में बांटना होगा। एक वह अचेतन मन, जिसका रूप भद्दा है और एक वह अचेतन मन, जो सुन्दर है, सरस और मधुर है। एक है कृष्णपक्ष और एक है शुक्लपक्ष। हम अचेतन मन के शुक्लपक्ष वाले भाग को जगाएं और कृष्णपक्ष वाले भाग को सोया रहने दें। केवल अचेतन मन को जगाने से काम नहीं होगा। अचेतन मन के उस भाग को जगाएं, जहां अच्छाइयां हैं । सैद्धांतिक भाषा में कहें तो उस धारा को जगाना है.जो क्षायोपशमिक भाव है । उस धारा को शांत रहने देना है, जो औदयिक
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