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________________ मनोदशा कैसे बदलें १४१ नहीं की, नियामक सूत्र का अभ्यास नहीं किया, उसके लिए यह कभी संभव नहीं है कि आवेश की स्थिति न होने पर आवेश न आए, मूड न बिगड़े। इसके लिए बहुत जरूरी है त्रिगुप्ति की साधना । ध्यान के बिना मनोगुप्ति की साधना नहीं हो सकती। ध्यान का अर्थ है मन को गुप्त कर लेना, मन को छिपा लेना । गुप्ति का अर्थ है-छिपाना । गुप्ति एक शस्त्र भी होता है, जो छिपा रहता है। बाहर से वह नहीं दिखता पर अन्दर उसका अस्तित्व रहता है। गुप्ति का अर्थ ही है छिपाना, ऊपर से आवरण डाल देना। मनोगुप्ति का अर्थ है-मन को इतना छिपा लेना कि उसका पता ही न चले । जब मन का पता रहता है तब तक वह अपना काम करता है । मन का काम है चंचलता । मन रहेगा तो चंचलता निश्चित ही रहेगी। यह कभी संभव नहीं है कि मन हो और चंचलता न हो। चंचलता और मन चंचलता का नाम है---मन और मन का नाम है चंचलता। जब मन को छिपा दिया, ढंक दिया तो वह मन रहा ही नहीं, अमन बन गया। अमन बनने पर ही "अमन" (चैन) की स्थिति बन सकती है । अमन-चैन तभी हो सकता है जब मन अमन बन जाएगा। जब तक मन है तब तक अमन-चैन नहीं हो सकता। अमन-चैन और मन-दोनों एक साथ नहीं हो सकते। एक म्यान में दो तलवारें कैसे रह सकती हैं। अमन-चैन होगा तो मन नहीं होगा और मन होगा तो अमन-चैन नहीं होगा। अमन होने की साधना, मनोगुप्ति की साधना बहुत महत्त्वपूर्ण साधना है । यह कलह निवारण, अशांति निवारण और मानसिक तनावों के विसर्जन की साधना है, मूड को प्रसन्न बनाए रखने की साधना है। इसे समझने वाला मूड को नियंत्रित करने का सूत्र हस्तगत कर लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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