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________________ मनोदशा कसे बदलें यह नहीं सोचा जाता कि दुनिया में मैं अकेला ही नहीं हूं, लाखों और हैं, जिनको पानी की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी मुझको है। सुविधावादी दृष्टिकोण में स्वार्थ की बात अधिक सोची जाती है, परार्थ की बात पर कम ध्यान दिया जाता है। आज अपेक्षा है-चिंतन बदले, चितन की धारा बदले । व्यक्ति यह सोचे-दुनिया में बहुत प्राणी हैं। मैं अकेला ही हकदार नहीं हूं। सबका हिस्सा है उसमें । भारत के ऋषियों ने इस बारे में बहुत महत्त्वपूर्ण चिन्तन दिया था पर वे व्यवस्था नहीं दे पाए । मार्स ने चिंतन के साथ-साथ व्यवस्था दी । ऋषियों ने कहा-'जितने से पेट भरे उतने मात्र पर व्यक्ति का अधिकार है। इतनी सम्पत्ति पर ही उसका हक है। शेष सारा अनधिकृत है। शेष सम्पत्ति समाज की है। जो इससे अधिक रखता है, वह चोर है, वध्य है। मूड बिगड़ने का कारण आज के सारे सुविधा-साधन प्रकृति के विरुद्ध हैं। हमारे लिए धूप और हवा आवश्यक है पर वह आज के मकानों में सुलभ नहीं है। हवा भी कृत्रिम साधनों से लाई जाती है। इससे शरीर ही नहीं बिगड़ा है, आदमी की मनोदशा भी बिगड़ी है, मूड भी बिगड़ने लगा है। सहिष्णुता की शक्ति को बढ़ाने के लिए आसनों का प्रयोग भी कारगर होता है। ध्यान के द्वारा मन की एकाग्रता सधती है किन्तु सहन करने की शक्ति का विकास उससे नहीं होता। सहन करने के लिए शरीर को पहले तैयार करना होता है। शरीर तैयार होता है आसनों से । जब तक शरीर नहीं सधता तब तक ध्यान भी पूरे ढंग से नहीं होता। ध्यान के लिए सबसे पहली आवश्यकता है कायसिद्धि की। ध्यान है मन:सिद्धि, मानसिक सिद्धि, चैतसिक सिद्धि । शरीर की सिद्धि हुए बिना यह नहीं सधती। जरूरी है संतुलन आसन की सिद्धि होने पर प्राणायाम की सिद्धि होती है और फिर द्वन्द सता नहीं सकते। आसनसिद्धि का अर्थ है-एक ही आसन में तीन घंटा बैठे रहना। इससे द्वन्द्वों, कष्टों को सहने की क्षमता बढ़ती है। ध्यान की सिद्धि और मन की सिद्धि तभी सम्भव है जब आसनसिद्धि हो जाए, कायसिद्धि हो जाए। इस सारी स्थिति के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि मूड या मनोदशा को ठीक रखने के लिए, 'क्षणे तुष्टः क्षणे रुष्टः' की प्रकृति को बदलने के लिए; मस्तिष्क के दोनों गोलाओं का संतुलन जरूरी है। इस सन्तुलन को साधने के लिए दोनों स्वरों-चन्द्रस्वर और सूर्यस्वर का संतुलन अपेक्षित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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