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है, जिन्होंने मस्तिष्क के दाएं पटल को जागृत कर डाला है, उनके कोई विकृत नहीं कर सकता ।
आज के युग में बायां पटल अधिक सक्रिय है, दायां सुषुप्त है । दोनों में संतुलन अपेक्षित है । यह संतुलन समवृत्ति श्वास- प्रेक्षा से साधा जा सकता है । यह अंकुश शक्ति है । जैसे हाथी के नियन्त्रण के लिए अंकुश, घोड़े के लिए लगाम होती है, वैसे ही समवृत्ति श्वास- प्रेक्षा इन दोनों पटलों के संतुलन के लिए नियंत्रणकारी है । यह नियंत्रण शक्ति हमारे हाथ में होनी चाहिए अन्यथा मूड बार-बार बिगड़ेगा ।
चित्त और मन
मूड को
सुविधावादी मनोवृत्ति
आज का समूचा परिवेश मनोदशा को उत्तेजित करने वाला है, बिगाड़ने वाला है । आदमी की सहनशक्ति कम हुई है और इसका कारण है सुविधावादी मनोवृत्ति । इस वृत्ति ने सहन करने की प्राकृतिक क्षमताओं को नष्ट कर डाला। आज आदमी सर्दी-गर्मी सहन नहीं कर सकता । सुविधाओं को भोगते-भोगते वह उनके वशवर्ती हो गया है । सहनशक्ति चुक गई है । केवल शारीरिक सहनशक्ति ही नहीं, आदमी का मन भी कमजोर हो गया है । उसकी भी सहनशक्ति कम हो गई है । कठोर जीवन और श्रम का जीवन जीना अच्छा होता है पर उसे भुला दिया गया । इन सुविधाओं ने आदमी में स्वार्थ और क्रूरता का भाव भी उजागर किया है। आदमी सारी सुविधाएं स्वयं भोगना चाहता है । दूसरों के प्रति उसका वैसा भाव नहीं है । महात्मा गांधी का कथन
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महात्मा गांधी इलाहाबाद गए। आनन्द भवन में ठहरे । प्रातः काल हाथ मुंह धो रहे थे । पास में जवाहरलाल नेहरू बंठे थे । बातचीत चल रही थी । गांधीजी के लोटे का पानी समाप्त हो गया । वे बोले – ओह ! बात ही बात में पानी पूरा हो गया, अभी कुल्ला करना शेष है। नेहरू ने कहाबापू ! क्या कह रहे हैं ! पानी पूरा हो गया तो आप जितना चाहेंगे उतना ओर आ जाएगा । यह गंगा-यमुना का नगर है बापू बोले- जवाहर ! तुम ठीक कहते हो कि यह नगर गंगा-यमुना का है । किन्तु इन पर अकेले बापू का अधिकार नहीं है । लाखों-करोड़ों लोगों का इन पर अधिकार है । मैं फिजूल पानी खर्च करूं, यह अनुचित है ।
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यहां पानी की कमी कैसी ?
स्वार्थ घटे
ऐसी भावना तब बनती है जब दृष्टिकोण सुविधावादी नहीं होता । कल ही मैं एक कोटेज से गुजर रहा था । मैंने देखा - टंकी से पानी फिजूल नीचे गिर रहा है । इतना पानी कि दस-बीस व्यक्ति स्नान कर ले। पर उस ओर किसी का ध्यान नहीं था, क्योंकि पानी का अभाव नहीं है, प्रचुरता है ।
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