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________________ मनादशा कैसे बदलें १३७ जाता है तो पहले ही क्षण में हार जाता है । कठोर कर्म सूर्यस्वर में ही सफल हो सकते हैं। जब दायां स्वर-सूर्यस्वर चलता है तब बांयां पटल सक्रिय होता है। उस समय तर्कशक्ति का विकास होता है। उस समय होने वाले तर्क-वितर्क में सूर्यस्वर वाला व्यक्ति जीत जाएगा। यदि चन्द्रस्वर में वह वादविवाद चलता है तो उसकी हार निश्चित है । लड़ना, झगड़ना, संघर्ष करना और विवाद करना ये सारे कठोर कर्म हैं। इनको सूर्यस्वर में ही किया जाता है। साधु-संत चन्द्रस्वर को विकसित करते हैं। उन्हें उत्तेजित करना सरल नहीं होता। ऐसे संत हुए हैं, जिन्हें हजार प्रयत्न करने पर भी उत्तेजित नहीं किया जा सका। निदर्शन एक व्यक्ति ने आचार्य भिक्षु से कहा-'आप ज्ञानी हैं। मुझे कोई तत्त्वज्ञान पूछिए।' भिक्षु बोले-तत्त्वज्ञान की बात रहने दो। ऐसे ही औपचारिक बात करो। उसने कहा-नहीं, तत्त्व के विषय में पूछिए। भिक्षु बोले-तुम संज्ञी हो या असंज्ञी अर्थात् मन वाले हो या अमन वाले ? उसने कहा-संज्ञी। किस न्याय से ? नहीं, नहीं, असंज्ञी। 'किस न्याय से ?' 'नहीं, नहीं, दोनों।' 'किस न्याय से?' 'नहीं, नहीं, दोनों नहीं।' 'किस न्याय से ?' वह उत्तेजित होकर बोला-न्याय, न्याय करते खोपड़ी खा ली। लो, इस न्याय से, कहता हुआ वह आचार्य भिक्षु की छाती में जोर से मुक्का मार कर चलता बना। आचार्य भिक्षु उसी प्रसन्न मुद्रा में उसको जाते हुए देखते रहे। जिनके चन्द्रस्वर सध जाता है, उनका मूड कभी खराब नहीं किया जा सकता। किसी में यह शक्ति नहीं होती कि उनके मूड को बिगाड़ सके । अंकुश-शक्ति जिन व्यक्तियों ने अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुना है, समझा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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