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मनोदशा कैसे बदलें
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करना चाहिए। मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, आदि-आदि। योद्धाओं और हिंसकों के लिए मांस-मदिरा की छूट थी, क्योंकि क्रूर हुए बिना दूसरों का कत्लेआम नहीं किया जा सकता। योद्धा को क्रूर होना होता है तभी वह अपने शत्रुओं को घास की भांति काट सकता है । उनके लिए तामसिक आहार की उपयोगिता बताई गई । सात्विक आहार करने वाले के मन में करुणा जाग जाती है । वह दूसरे को मार नहीं सकता।
पहले मांस-मदिरा का प्रयोग सीमित दायरे में था पर आज यह समाजव्यापी बन गया। सभी क्षत्रिय और योद्धा बन गए। यह सभी में चल पड़ा इसीलिए बहुत हानि हुई है। पाचनक्रिया और स्वभाव
स्वभाव के साथ संबंध है पाचनक्रिया का। जिस व्यक्ति की पाचनः क्रिया ठीक नहीं होती, वह भावनात्मक स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं रख सकता। सीधा संबंध लगता है-पाचनक्रिया ठीक नहीं है तो शारीरिक स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा। पाचन ठीक नहीं होगा तो चयापचय की क्रिया ठीक नहीं होगी किन्तु इसका भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी बहुत असर होता है । जिस व्यक्ति का पाचन ठीक नहीं है उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है। बहुत सारे लोग चिड़चिड़े होते हैं, बात-बात पर चिड़ जाते हैं। छोटी-सी बात होती है और चिड़ जाते है, प्रत्येक बात पर चिड़ना उनका स्वभाव ही बन जाता है। अच्छी बात से भी चिड़ जाते हैं और बुरी बातों से तो चिड़ते ही हैं। यह पाचन क्रिया का दोष है । पाचन ठीक नहीं होता है तो चिड़चिड़ापन आ जाता है; व्यक्ति का मूड बिगड़ता रहता है। पाचन-तंत्र से स्वभाव में विकृति
___ मैंने स्वयं अनुभव किया है जिसका पाचन-तंत्र और उत्सर्जन तंत्र स्वस्थ नहीं होता, वह स्वभाव से भी स्वस्थ नहीं होता । पाचन-तंत्र ठीक नहीं होता है तो स्वभाव में विकृतियां आ जाती हैं । खाते खूब हैं किन्तु सफाई होती नहीं है । मल का निष्कासन ठीक प्रकार से नहीं होता है, कब्ज रहता है, कोष्ठबद्धता रहती है तो सारा स्वभाव गड़बड़ा जाता है। उदासी, बेचैनी
और गुस्सा ज्यादा आना, बुरी बात सोचना, बुरे विचार आना, बुरी कल्पना करना, हत्या या मारकाट का विचार आना-इस प्रकार के विचार आने लग जाते हैं। हमें जागरूक होना है इन दो तंत्रों के प्रति—पाचन तंत्र के प्रति
और उत्सर्जन तंत्र के प्रति। कुछ लोग इसमें जागरूक नहीं होते। उनका दिमाग भी ठीक काम नहीं करता । स्मृति भी ठीक काम नहीं करती। स्मृतिदोष और उत्सर्जन तंत्र में बहुत गहरा संबंध है । प्रसन्नता से भी उसका बहुत गहरा संबंध है । हमारा जितना ध्यान खाने पर केन्द्रित है उतना उत्सर्जन
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